Astrology: कुंडली में जो सबसे शक्तिशाली राजयोग होते हैं वो ग्रहों से नहीं बनते हैं बल्कि वो बनते हैं कुंडली (Kundli) के भावों से. ज्योतिष की भाषा में “भाव योग” कहा जाता है. ज्योतिष में दो तरह के योग होते हैं. पहला योग वो जो कुंडली के भावों से बनता है जबकि दूसरे योग वो होते है जो ग्रहों से बनते है.



 

जबकि ग्रहों से बनने वाले योग के प्रभाव के लिए उस ग्रह की महादशा या अन्तर्दशा का चलना जरूरी होता है. लेकिन भावों से बनने वाले राजयोग के लिए ऐसा नहीं है खासतौर पर तब जब ये राजयोग नवमांश कुंडली के साथ बन रहा हो या फिर केन्द्र और त्रिकोण के स्वामियों के परिवर्तन से बन रहा हो. जब में दो या दो से अधिक ग्रह एक साथ किसी भाव में बैठ जाएं या फिर वो अलग-अलग भावों में बैठकर एक-दूसरे पर दृष्टि डाल रहे हों तो इस प्रकार से बनने वाले योग को ग्रह योग कहा जाता है. ये योग शुभ भी हो सकते हैं और अशुभ भी. 

 

नवमांश कुंडली

कुंडली के भावों से बनने वाले योग में नवमांश कुंडली का महत्व बढ़ जाता है. भावों से बनने वाला सबसे शुभ और शक्तिशाली राजयोग होता है उदित नवमांश का वर्गोत्तमी होना. इसे इस वजह से शक्तिशाली माना जाता है क्योंकि दो या तीन भाव स्वतः भावोत्तम हो जाते हैं अथवा दो या तीन ग्रह स्वतः वर्गोत्तम हो जाते हैं. ये अपनी दशा और अन्तर्दशा में तो शुभ फल देते ही हैं इसके अलावा ये अपने भाव से सम्बन्धित मामलों में लगातार शुभ फल देते रहते हैं.


शक्तिशाली राजयोग

 

विपरीत राजयोग-ये भाव से बनने वाला दूसरा सबसे शक्तिशाली राजयोग होता है. इस राजयोग का मतलब होता है कुंडली में त्रिक भाव यानि 6, 8 और 12 के स्वामियों का त्रिक भाव में ही रहना. अर्थात् 6 घर के स्वामी अगर 8 घर या 12 घर हो, 8 घर के स्वामी अगर या 12th में हो या फिर 12 घर के स्वामी 6 या 8 घर में मौजूद हो, तब ये राजयोग बनता है. इसे विपरीत राजयोग इस वजह से कहा जाता है क्योंकि ये राजयोग बेहद विपरीत परिस्थितियों में बनता है.

 

महत्वपूर्ण योग

 

भाव पर दृष्टि-ये भाव से बनने वाला अगला महत्वपूर्ण योग है जब कुंडली में किसी भाव के स्वामी अपने भाव पर दृष्टि डाल रहे हो. इसमें भाव कारक भी शामिल है यानि किसी भाव का कारक ग्रह अपने उस भाव पर दृष्टि डाल रहे हो तो भी वो हमेशा शुभ और अच्छा परिणाम देता है. यही वजह है कि लग्नेश का लग्न में बैठने से कहीं बेहतर होता है लग्नेश का लग्न पर दृष्टि डालना. कुछ व्यक्तियों की कुंडली में कोई राजयोग या लक्ष्मीयोग नहीं होता उसके बावजूद वो सफल और धनवान होते हैं ऐसा इसीलिए होता है कि उनकी कुंडली में भाव के स्वामी अपने भाव को देख रहे होते है. जैसे अगर दशमेश दशम भाव में बैठे हो तो वो सिर्फ अपनी दशा में ही अच्छे परिणाम देंगे. बावजूद इसके अगर दशमेश चतुर्थ भाव में बैठ कर दशम भाव पर दृष्टि डाल रहे हो तो वो हमेशा अच्छे परिणाम देंगे.

 

केन्द्र, त्रिकोण

 

भाव परिवर्तन योग-ये भी भाव से बनने वाला शुभ योग है केन्द्र और त्रिकोण के स्वामियों का भाव परिवर्तन करना. यानि केन्द्र का स्वामी त्रिकोण में और त्रिकोण का स्वामी केन्द्र में. इसमें ज्यादातर लोग यही मान सकते हैं कि ये ग्रहों से बनने वाला योग है. मगर ये ग्रह से ज्यादा भाव का स्वामी महत्वपूर्ण होता है. केन्द्र और त्रिकोण के भाव के स्वामियों का परस्पर एक-दूसरे के भाव में बैठने से केन्द्र और त्रिकोण हमेशा सक्रिय रहते हैं. क्योंकि ये कुंडली के सबसे शुभ भाव होते हैं इसलिए इनके लगातार सक्रिय होने से जीवन में ज्यादातर शुभ फलों की प्राप्ति होती रहती है.

 

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