राहु को छाया ग्रह माना जाता है. समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत को देवताओं की टोली में शामिल होकर पीने वाले दैत्य का सिर भगवान विष्णु धड़ से अलग कर देते हैं. इस प्रकार दो ग्रह राहु और केतु जन्म लेते हैं. राहु सिर का हिस्सा होने के अक्सर ऐसी अड़चनों को जीवन में लाता है जिनमें हमारा मष्तिस्क काम करना या कहें सोचना बंद कर देता है. व्यक्ति को समझ ही नहीं आता इस समस्या का हल किस प्रकार निकाला जाए.


राहू आकस्मिक अवरोधों को उत्पन्न कर व्यक्ति कार्यगति को प्रभावित करता है. इससे बचने के लिए राहु का ध्यान इस मंत्र के साथ करना श्रेयश्कर है.


राहु ध्यान मंत्र-
कराल वदनः खड्गचर्मशूली वरप्रदः।
नील सिंहासनस्थश्च राहुरत्रप्रशस्यते।।


इस मंत्र को आप सूर्यादय अथवा संध्याकाल में जपते हुए राहु का ध्यान करें. इससे समस्त आकस्मिक आपदाओं से मुक्ति पाएंगे. जीवन में अचानक उभरे दैहिक दैविक और भौतिक तापों में राहत पाएंगे.


वर्तमान में राहु वृष राशि में गोचर कर रहे हैं. इस गोचर के प्रभाव से वृष, वृश्चिक, कुंभ, मिथुन और तुला राशि के जातकों के लिए राहु अशुभ प्रभाव में बने हुए हैं. राशि वालांे को राहु का ध्यान और दान दोनों करना चाहिए. राहु की महादशा से पीड़ित जातकों को भी राहु ध्यान मंत्र से राहु का स्मरण करना चाहिए.