Rahu Ketu Dosh Effects: राहु और केतु को ज्योतिष शास्त्र में सबसे रहस्मय ग्रह की उपाधि दी गई है. 23 मई 2021 को वैशाख शुक्ल की एकादशी तिथि है. इसी एकादशी की तिथि को स्वरभानु नाम के राक्षस को धोखे से अमृत पी लेने के कारण भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लेकर इसका सिर धड़ से अलग कर दिया था. सिर को राहु और धड़ को केतु कहा गया.
विशेष बात ये है कि वैशाख शुक्ल की एकादशी तिथि को ही समुद्र मंथन की प्रक्रिया से अमृत कलश निकला था. जिसे प्राप्त करने के लिए देवताओं और असुरोें में युद्ध की स्थिति बनने लगी थी. तब भगवान विष्णु ने इस विवाद को खत्म करने के लिए मोहिनी रूप लिया था. इसीलिए इस एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है. अमृत की कुछ बूंदे पी लेने के कारण राहु और केतु अमर हो गए.
ज्योतिष शास्त्र में इन दोनों को ग्रह की उपाधि प्रदान की गई है. कलयुग में राहु और केतु की स्थिति को बहुत ही अहम माना गया है. राहु और केतु धन, जॉब, करियर और लव रिलेशन से जुड़ी समस्या भी प्रदान करते हैं. वैशाख मास में राहु केतु के मंत्रों का जाप करना शुभ माना गया है. इससे इन ग्रहों की अशुभता दूर होती है.
राहु का स्वभाव
राहु के पास सिर है, लेकिन धड़ नहीं है. इसलिए राहु व्यक्ति को दिमाग को सबसे अधिक प्रभावित करता है. राहु अशुभ होने पर व्यक्ति को मानसिक तनाव, भ्रम, अज्ञात भय की स्थिति प्रदान करता है. राहु प्रधान व्यक्ति साहसी, परिश्रमी, विभिन्न विषयों का जानकार, संचार, जासूसी के क्षेत्र में अधिक सफलता प्राप्त करता है.
केतु का स्वभाव
ज्योतिष शास्त्र में केतु का स्वभाव मंगल की तरह बताया गया है. ये साहस, क्रोध, रोमांच और युद्ध का भी कारक है. केतु को भी एक क्रूर ग्रह माना गया है. ये अश्विनी, मघा और मूल नक्षत्र का स्वामी है.
राहु-केतु जीवन में अचानक लाभ और हानि प्रदान करते हैं
राहु और केतु जीवन में जब कुछ प्रदान करते हैं बड़ा प्रदान करते हैं. यही कारण है कि जब ये हानि देते हैं तो बड़े पैमान पर हानि प्रदान करते हैं, वहीं जब ये शुभ होते हैं तो अचानक जीवन में बड़ा लाभ प्रदान करते हैं. राजा को रंक और रंक को राजा बनाने की क्षमता इन्हीं दो ग्रहों को प्राप्त है.
काल सर्प दोष और पितृ दोष
राहु और केतु के कारण जन्म कुंडली में कालसर्प दोष और पितृदोष की स्थिति बनती है. ज्योतिष शास्त्र में कालसर्प और पितृदोष को अशुभ योग माना गया है.
इन मंत्रों का जाप करें-
- ॐ रां राहवे नम:
- ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:
- ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: केतवे नम: