Kundali Mein Vipreet Rajyoga: वैदिक ज्योतिष के सबसे गूढ़ राज योगों में से एक विपरीत राज योग है. संस्कृत शब्द विपारिता का अर्थ है "विपरीत". परिणामस्वरूप, विपारिता के दृष्टिकोण के अनुसार, नकारात्मक भावों (घरों) के स्वामी द्वारा सताए गए किसी भी प्रकार के ग्रह समामेलन से निकलने वाले किसी भी परिणाम को योग के रूप में वर्णित किया जा सकता है.सीधे शब्दों में कहें, तो दुष्ट भावों के स्वामी की भेद्यता इस योग को उभरने का कारण बनती है.जो लोग इस योग को करते हैं उन्हें कष्ट, कष्ट, विभिन्न प्रकार की हानियाँ और पीड़ा सभी का अनुभव होता है.विपरीत राजयोग एक बहुत ही शक्तिशाली और आशाजनक योग है जो जीवन में पूर्ण सफलता की गारंटी देता है.
विपरीत राजयोग के प्रकार
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी कुंडली में जब छठे, आठवें और बारहवें भाव का स्वामी ग्रह योग बनाता है तो ऐसी स्थिति में विपरीत राजयोग का निर्माण होता है.साथ ही यह छठे, आठवें और बारहवें भाव के स्वामी ग्रहों की अंतर्दशा के कारण भी है.विपरीत राजयोग बेहद शुभदायीं माना जाता है. यदि किसी व्यक्ति की कुण्डली में विपरीत राजयोग हो तो उस व्यक्ति को धन, कार, बंगला, विलासिता आदि की प्राप्ति होती है.आइए जानते हैं विपरीत राजयोग के बारे में.
विपरीत राजयोग के प्रकार
ज्योतिषविदों के अनुसार विपरीत राजयोग तीन प्रकार के होते हैं
हर्ष विपरीत राजयोग
हर्ष विपरीत राजयोग षष्टम, अष्टम और द्वादश भाव में बनता है. ज्योतिषशस्त्र के अनुसार जिन मनुष्यों की कुंडली में हर्ष विपरीत राजयोग होता है, वे न सिर्फ शारीरिक रूप से मजबूत बल्कि धनवान भी होते हैं. हर्ष विपरीत राजयोग वाले लोगों को समाज में मान सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है.
विपरीत सरल राजयोग
विपरीत सरल राजयोग कठिन समय में लड़ने की क्षमता प्रदान करता है. विपरीत सरल राजयोग के प्रभाव से कोई भी जातक चतुर, बुद्धिजीवी और धनवान बनता है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार विपरीत सरल राजयोग से संबंध रखने वाला व्यक्ति धनवान होता है.
विपरीत विमल राजयोग
यदि किसी जातक की कुंडली में षष्टम, अष्टम और द्वादश भाव का स्वामी केवल द्वादश भाव में स्थित हो या फिर द्वादश भाव का स्वामी षष्टम और अष्टम भाव में हो यह योग विपरीत विमल राजयोग बनाता है. जिस व्यक्ति की कुंडली में यह योग होता है वह व्यक्ति जीवनपर्यंत सुखी रहता है.
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