Ram Katha, Angad Story: भगवान श्रीराम जब माता सीता को लाने के लिए लंका जा रहे थे तब उनकी सेना में सुग्रीव, हनुमान जी, जामवंत और अंगद जैसे कई वीर योद्धा शामिल थे. अंगद वानर सेना राजा बाली और अप्सरा तारा के पुत्र थे. अंगद प्राण विद्या में शक्तिशाली थे. इस कारण उनका शरीर इतना बलिष्ठ था कि कोई उनके पैर को भी कोई नहीं हिला सकता था. अंगद के साथ ही श्रीराम की सेना में हनुमानजी और जामवंत भी प्राण विद्या में पारंगत थे.


रावण के पास शांतिदूत बनकर गए अंगद


रामजी की सेना माता सीता को लंका से लाने के लिए समुद्र को पारकर लंका में प्रवेश करने वाली थी. लेकिन श्रीराम चाहते थे कि इस दौरान किसी युद्ध को टाल दिया जाए तो विनाश से बचा जा सकता है. युद्ध से होने वाले विनाश से बचने के लिए रामजी ने अंगद को रावण के पास शांतिदूत बनाकर भेजा.


टस से मस नहीं हुआ अंगद का पैर  


अंगद जब शांतिदूत बनकर रावण की सभा में पहुंचे तो रावण में अंगद का खूब अपमान और उपहास किया. इससे अंगद बहुत खिन्न हो गया. अंगद ने पूरी सभा में ही प्रस्ताव रख दिया कि यहां मौजूद सभासद में यदि कोई उसका पैर भी जमीन से हिला दे तो वे हार मान लेंगे और श्रीराम व पूरी सेना के साथ वापस अयोध्या को लौट जाएंगे.


इतना कहते ही अंगद अपने पैर बहुत शान से भूमि पर टिकाकर खड़े हो गए. रावण की सभा में मौजूद सभी लोग एक-एक कर आएं और अंगद के पैर को हिलाने की कोशिश की. लेकिन अंगद का पैर टस से मस नहीं हुआ और सभी इस कार्य में असफल रहें.


रावण को पैर हिलाने से अंगद ने क्यों किया मना


रावण की सभा में मौजूद सभी लोग जब हार गए तो रावण का पुत्र मेघनाथ भी आया, वो भी असफल रहा. भारी सभा में अंगद की चुनौती से सन्नाटा पसरा गया... सभी के सिर झुक गए. ये स्थिति देख तब लंकापति रावण को खुद ही अंगद के पैरों में आना पड़ा. रावण सिंहासन से उठे और अंगद के पास आए. लेकिन अंगद ने रावण को अपने पैरों को हाथ भी लगाने नहीं दिया.


अंगद ने रावण से कहा, यह कार्य मैंने सिर्फ सभासदों को दिया था आपको नहीं. आपका मेरे चरणों को स्पर्श करना निरर्थक है. यदि आपको किसी के पैरों को स्पर्श करना है तो आप प्रभु श्रीराम के चरणों में शरण लें, आपका कल्याण हो जाएगा. अंगद की इस बात को सुन रावण मौन रह गए और पुन: अपने सिंहासन पर विराजमान हो गए.


जब रावण की पूरी सभासद से अंगद का पैर नहीं हिला तो अंगद ने गूढ़ रहस्य को बताया. गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरत मानस के लंकाकांड में अंगद जोकि रावण की सभा में सीख देते हुए कहते हैं, कौन से ऐसे 14 दुर्गुण है जिससे व्यक्ति मृतक के समान हो जाता हैं-


जौं अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई॥
कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥


सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी।।
तनु पोषक निंदक अघ खानी जीवत सव सम चौदर प्रानी।।


भावार्थ- ''यदि ऐसा करूं, तो भी इसमें कोई तारीफ की बात नहीं है, मरे हुए को मारने में कोई बहादुरी नहीं है. वाममार्गी, कामी, कंजूस, अत्यंत मूढ़, अति दरिद्र, बदनाम, बहुत बूढ़ा. नित्य का रोगी, क्रोध करने वाला, भगवान विष्णु से विमुख, वेद और संतों को न मानने वाला, अपने ही हित के बारे में सोचने वाला, दूसरों की निंदा करने वाला और पापी - ये चौदह प्राणी जीवित होकर भी मृत के समान हैं.''


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