Ramayan, Kumbhkaran Story: रामायण की कथा बताती है कि जब रावण के अत्याचारों से तीन लोकों की शांति भंग हो गई और लोग परेशान होने लगे तब, भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में सातवां अवतार लिया. रावण के बारे में शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि वो बहुत ही ज्ञान था, लेकिन साथ साथ अभिमानी भी था. उसे अपनी शक्ति पर भी अपार अभिमान था. उसे किसी भी प्रकार के अत्याचार को करने में दुख नहीं होता था, इसीलिए उसके अत्याचार और गलत कामों की सूची बढ़ने लगी.
रावण इतना अहंकारी और क्रोधी था, कि उसे अपने भाइयों की भी सलाह पसंद नहीं आती थी, उसे ये गुमान था कि वो जो भी कर रहा है, वो ही श्रेष्ठ और उत्तम है. विभीषण की तरह रावण का एक भाई और भी था, जो उसके हर बुरे कार्य का विरोध करता है, बावजूद इसके, युद्ध में रावण का पूरा सहयोग किया और भगवान राम के हाथों मारा गया.
कुंभकरण कितने दिन सोता है?
कुंभकरण रावण का भाई था. पौराणिक कथा के अनुसार कुंभकरण ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की. लेकिन जब वरदान देने का अवसर आया तो माता सरस्वती उसके जीभ पर पर बैठ गईं, जिसके कारण उसकी जबान लडखड़ा गई और उसने इंद्रासान की बजाए निद्रासन मांग लिया. बाद में उसे अपनी गलत का अहसास हुआ तो रावण के कहने पर ब्रह्मा जी ने उसे छह माह तक सोने का वरदान दे दिया. लेकिन साथ ही व्रह्मा जी ने ये चेतावनी भी दी कि इसके बाद केवल एक दिन के लिए उठेगा. लेकिन इससे पहले यदि कुंभकरण उठेगा तो उसकी मृत्यु हो जाएगी.
कुंभकरण भी रावण की तरह ज्ञानी था
कुंभकरण के बारे में कहा जाता है कि वो अत्यंत विद्वान था. उसे भी वेद, शास्त्र आदि की जानकारी थी. वहीं जब कुंभकरण जागता था तो शोध कार्य किया करता था. कुंभकर्ण के पिता का नाम ऋषि विश्रवा था, कुंभकरण भूत और भविष्य का भी ज्ञाता था. इसीलिए उसने रावण को कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन रावण ने उसकी एक न मानी.
कुंभकरण कैसे मरता है?
कुंभकरण को जब ये ज्ञात हुआ कि रावण माता सीता को हर लाया है, और अशोक वाटिका में रखा हुआ है तो उसने रावण के इस कृत्य का विरोध किया. कथाओं के अनुसार कुंभकरण मर्यादा और रिश्तों को निभाने वाला राक्षस था, इसलिए उसने रावण से कहा कि मैं जानकर भी अर्धम का साथ दे रहा हूं, क्योंकि मुझे भाई का साथ देने के लिए कहा गया है. लेकिन जो किया है, उसे किसी भी सूरत में सही नहीं कहा जा सकता है. इसके बाद कुंभकरण रावण की तरफ से भगवान राम की सेना पर टूट पड़ता है. कुंभकरण वानर सेना को तहस-नहस कर देता है. वानर सेना में खलबली मच जाती है. और अंत में स्वयं भगवान राम को कुंभकरण से युद्ध करने के लिए आना पड़ता है. युद्ध में भगवान राम के हाथों उसका वध होता है. कुंभकरण इस बात को भी जानता था कि श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार हैं.