Mesh Rashi And Vrischika Rashi: मेष और वृश्चिक राशि को ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राशि चक्र की प्रथम और आठवीं राशि का दर्जा प्राप्त है. मेष राशि के जातक जहां अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित रहते हैं वहीं वृश्चिक राशि वाले किसी भी परिस्थिति में अपनी प्रतिभा को साबित करने में सफल होते हैं.


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मेष राशि और वृश्चिक राशि वाले जातक परिश्रम करने में कभी पीछे नहीं हटते हैं. ये अपने बल पर अपनी पहचान बनाते हैं और जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं. लेकिन इन दोनों राशियों में यदि राहु- केतु के स्थिति शुभ नहीं होती है तो कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.


राहु- केतु जब अशुभ होते हैं
राहु-केतु जब अशुभ होते हैं तो ये दोनों ग्रह व्यक्ति की जीवन में परेशानियों का अंबार लगा देते हैं. एक परेशानी समाप्त होती है तो दूसरी आरंभ हो जाती है, कुछ इसी तरह की स्थिति जीवन में दिखाई देने लगती है. यदि राहु-केतु के द्वारा निर्मिक कालसर्प दोष या फिर पितृ दोष जन्म कुंडली में मौजूद हो तो जीवन में और भी अधिक परेशानियां देखने को मिलती है. व्यक्ति जीवन भर भटकता रहता है. हर कार्य में असफलता प्राप्त होती है. करियर में बाधा, जॉब में दिक्क्त और व्यापार में हानि की संभावना बनी ही रहती है.


मेष राशि: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु और केतु को पाप ग्रह की श्रेणी में रखा गया है. ये सदैव अशुभ फल देते हैं ऐसा नहीं है. शुभ स्थान होने पर ये दोनों ग्रह बहुत अच्छे परिणाम भी देते हैं. मेष राशि की जन्म कुंडली में यदि राहु- केतु में से कोई भी ग्रह तृतीय या बारहवें भाव में है तो ये शुभ फल प्रदान करता है.


वृश्चिक राशि: राहु- केतु से निर्मित होने वाले कालसर्प दोष या पितृ दोष पर ध्यान देना चाहिए. यदि वृश्चिक राशि में इन दोनों दोषों में से कोई भी दोष मौजूद है तो उसका तुरंत उपाय करना चाहिए. कालसर्प या पितृदोष दोष होने पर व्यक्ति जीवन भर परेशान रहता है. उसे हर चीज बहुत मुश्किल से प्राप्त होती है.


राहु- केतु का उपाय
राहु और केतु को शांत रखने के लिए बुधवार को भगवान गणेश जी की पूजा करें. इस दिन गणेश जी को दुर्वा घास चढ़ाएं. मां दुर्गा के नवार्ण मंत्र का पाठ करने से भी इन ग्रहों को शांत रखने में मदद मिलती है. ये मंत्र इस प्रकार है-


ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे


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