प्रार्थना की शक्ति अविश्वसनीय होती है. सुबह उठकर सबसे पहले ईश्वर का याद करना और नए दिन के लिए धन्यवाद देना सकारात्मकता से भरता है. ईश्वर की प्रार्थना का ढंग व्यक्ति के लिए देश काल संस्कृति पर निर्भर करता है. भगवान मूर्त और अमूर्त दोनों रूपों में स्मरणीय और पूजनीय है.


भारतीय सनातन परंपरा में आंख खोलने के साथ दोनों हाथों की हथेलियों को देखने और प्रार्थना करने का ढंग बताया है. भोर की प्रार्थना का पहला मंत्र इस प्रकार है-
कराग्रे वसते लक्ष्मी, कर मध्य सरस्वती।
करमूले तू गोविंदः प्रभाते कर दर्शनम्।।

हाथों को याचक की मुद्रा में रखकर नवदिन का धन्यवाद करते हुए यह मंत्र पाठ आस्था और आत्मविश्वास को बल देने वाला है. मंत्र का भावार्थ यह है कि हाथों से श्रेष्ठ कार्य हों. हथेल के आगे के भाग पर लक्ष्मीजी का वास है. लक्ष्मीजी हमें धन धान्य वैभव और सुख समृद्धि प्रदान करती हैं.


हथेलियों के मध्य में सरस्वती का वास है. मां सरस्वती ज्ञान की देवी हैं. हाथों के निचेल भाग में साक्षात् गोविंद का वास है. वे भव बंधन का हरने वाले हैं. हम सभी को प्रभात यानि भोर में हाथों के दर्शन करने चाहिए. इसका सामान्य भाव यह भी है कि हमारे हाथों से श्रेष्ठ कार्य हों.