Sankashti Chaturthi Puja: संकष्टी चतुर्थी सभी प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है. किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. भगवान गणेश को सभी देवी-देवतों में प्रथम पूजनीय माना जाता है. गणपति को बुद्धि, बल और विवेक का देवता कहा जाता है. भगवान गणेश अपने भक्तों की सभी परेशानियों और विघ्नों को हर लेते हैं इसीलिए इन्हें विघ्नहर्ता भी कहते हैं.
हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कई व्रत-उपवास बताए गए हैं. संकष्टी चतुर्थी व्रत भगवान गणेश को समर्पित है. संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी. इस दिन पूजा-पाठ करने से सभी तरह के दुखों से छुटकारा मिलता है. चतुर्थी के दिन गणेश भगवान की पूजा करना बहुत फलदायी होता है. जानते हैं कि इस दिन किस विधी से गणपति का पूजन करना चाहिए.
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
- संकष्टी चतुर्थी के दिन उपवास रखकर गणपति को प्रसन्न करने के प्रयास किए जाते हैं. इस दिन प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इस दिन लाल रंग का वस्त्र धारण करना बहुत शुभ होता है. अब गणपति की पूजा की शुरुआत करें. गणपति की पूजा करते समय दिशा का विशेष ध्यान रखें. इस दिन जातक को अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना चाहिए. अब गणपति की मूर्ति को फूलों से अच्छी तरह से सजा लें.
- गणपति की पूजा में तिल, गुड़, लड्डू, फूल, ताम्बे के कलश में पानी, धुप, चन्दन, प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रखें. पूजा के समय देवी दुर्गा की प्रतिमा या मूर्ति भी पास रखना बेहद शुभ माना जाता है. अब गणपति को रोली लगाएं और उन्हें फूल और जल अर्पित करें. संकष्टी के दिन बप्पा को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं. दीप जला कर निम्लिखित मन्त्र का जाप करें. 'गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्. उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्..'
- शाम के समय चांद के निकलने से पहले आप गणपति की पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें और पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद बाटें. संकष्टी चतुर्थी का व्रत रात में चांद देखने के बाद ही खोला जाता है.
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