शनि ग्रह को भाग्य का ग्रह माना जाता है. हाथ में उसका स्थान केंद्रीय स्थान में सबसे उूंचा होता है. शनि अंगुली भी सबसे बड़ी होती है. जिस जातक के हाथ में शनि पर्वत पर जितनी ज्यादा रेखाएं आती हैं वह उतना अधिक भाग्यशाली होता है.


सर्वाेत्तम भाग्य रेखा हथेली के एकदम निचले भाग से सीधे उूपर की ओर आते हुए शनि पर्वत तक जाती है. ऐसी रेखा वाले जातक के जीवन में स्थाई संपत्ति के साथ अच्छी आय के संकेत होते हैं. वह पैतृक धनी और उद्यमी होता है. बड़ा भूभाग का मालिक और आलीशान घर प्राप्ति की संभावना होती है.


भाग्य रेखा को शनि रेखा भी कहते हैं. यह हथेली के किसी भी हिस्से से प्रारंभ होकर शनि पर्वत तक पहुंचती है. यह जिस हिस्से से निकलती है उस स्थान के पर्वत से गहरा जुड़ाव होता है. उसी प्रकार के परिणाम भी व्यक्ति को जीवन में मिलते हैं. जैसे- हाथ में उच्च और निम्न दो मंगल स्थान होते हैं. इनसे निकली भाग्य रेखा मंगल के प्रभाव के बढ़ा देती है. साहस पराक्रम से व्यक्ति बड़ा बनता है. भूमि भवन को मेहनत से प्राप्त करता है. बड़े जिम्मेदार पदों पर योग्यता से पहुंचता है.


इसी प्रकार चंद्रमा से निकली भाग्य रेखा व्यक्ति को यात्राओं से लाभ देती है. व्यक्ति का भाग्योदय जीवनसाथी के आने से होता है. अथवा कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति मददगार बनता है. जिन लोगों के हाथों में शनि रेखा अर्थात् भाग्य रेखा का अभाव होता है. वे संघर्षपूर्ण जीवन जीते हैं। मेहनत के बराबर फल पाते हैं.


कई बार भाग्य रेखा बीच में टूटी धुधली कटी हुई होती है. जिस स्थान पर भाग्य रेखा प्रभावित होती है जीवन के उस आयु वर्ग में व्यक्ति को संघर्ष देखना पड़ता है. भाग्य रेखा के शुभ फल के लिए व्यक्ति को शनि के पदार्थाें का दान करना चाहिए। शनि वंदना एवं मंत्र जप करना चाहिए. कमजोर वर्ग के लोगों के प्रति सहानुभूति व आदरभाव रखना चाहिए। यथासंभव उनकी मदद भी करनी चाहिए.