Sawan Somvar 2022: जानिए कौन से होते हैं भगवान शिव के आभूषण और क्या है इसके पीछे की कथा
Lord Shiva: देवों के देव महादेव कहे जाने वाले भगवान शिव का स्वरूप वैरागी माना गया है, जिसका मोह माया और भौतिक सुखों से कोई सरोकार नहीं है. आइए जानें शिव आभूषणों के बारे में.
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Ornaments of Lord Shiva: भगवान शिव अपने भक्तों की भक्ति से बहुत जल्दी खुश हो जाते हैं. कभी आपने गौर किया है कि जब भी हम लोग भगवान शिव (Lord Shiva) का रूप देखते हैं, तो आभूषण के रूप में कई सारी चीजें उभर के सामने आती हैं. जिसमें त्रिशूल, डमरु और नंदी से लेकर कई ऐसी चीजे हैं, जो ये सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि ये सब चीजें किस बात का प्रतीक हैं. भगवान शिव के इन आभूषणों (Ornaments) को धारण करने के पीछे कुछ पौराणिक कथाएं और मान्यताएं भी हैं. चलिए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से.
भगवान शिव के आभूषण
शिव की जटाएं
भगवान शिव अंतरिक्ष के देवता माने जाते है. इनके द्वारा धारण की गई जटाएं वायुमंडल की प्रतीक मानी जाती है.कहा जाता है कि जब स्वर्ग से गंगा को धरती पर उतारने का उपक्रम हुआ तो यह सवाल उठा कि गंगा के इस अपार वेग से धरती में विशालकाय छिद्र हो सकता है, तब गंगा पाताल में समा जाएगी. ऐसे में भगवान शिव ने गंगा को सर्वप्रथम अपनी जटा में विराजमान किया और फिर उसे धरती पर उतारा. नहीं तो गंगा नदी पाताल में समा जाती.
शिव का अर्धचन्द्र
भगवान शिव ने अपने शिखर पर चंद्रमा को भी स्थान दिया है इसलिए उन्हें चंद्रशेखर या सोम कहा गया है. पुराणों के अनुसार जब चंद्रमा दक्ष प्रजापति के श्राप के कारण कलंकित हो गए थे तो भगवान शिव ने चंद्रमा की तपस्या से प्रसन्न हो कर उन्हें अपने शीश पर धारण किया और उनका कलंक दूर हुआ.भगवान शिव के सिर पर चन्द्र का होना समय को नियंत्रण करने का प्रतीक है क्योंकि चन्द्र समय को बताने का एक माध्यम है.
शिव का त्रिनेत्र
भगवान शिव जी की तीन आंखें हैं इसीलिए इन्हें त्रिलोचन कहते हैं. इसी दिव्य दृष्टि से वह तीनों काल यानि भूत भविष्य वर्तमान पर नजर रखते हैं. ऐसी शक्ति किसी अन्य देवता के पास नहीं है. मान्यता है कि शिव के इस तीसरे नेत्र के खुलने पर पूरी सृष्टि नष्ट हो सकती है.
शिव का सर्पहार
भगवान शिव अपने गले में सर्प धारण करते हैं.जिसे नागराज कहा जाता है और इस नाग का नाम वासुकी है , जो भूत, वर्तमान एवं भविष्य का सूचक है. इन्हीं का प्रयोग समुद्र मंथन के दौरान रस्सी के रुप में किया गया था. इनकी भक्ति के कारण ही भगवान शिव ने नागलोक का राजा बनाया था और अपने गले में आभूषण के तौर पर धारण किया था.भगवान शिव जी के गले में लिपटे हुए सर्प को कुंडलनी का प्रतीक माना जाता है, जो गले में स्थित विशुद्धि चक्र को हानिकारक प्रभावों से बचाता है.
रूद्राक्ष की माला
भगवान शिव अपने गले में रूद्राक्ष की माला पहनते है जोकि रूद्राक्ष पेड़ के 108 बीजों से मिलकर बनी है.रूद्राक्ष के पीछे एक कहानी है यह है कि जब भगवान शिव ने गहरे ध्यान के बाद अपनी आंखें खोली, तो उनकी आंख से आंसू की बूंद पृथ्वी पर गिर गयी और पवित्र रूद्राक्ष के पेड़ में बदल गया.
शिव का त्रिशूल
भगवान शिव अपने हाथ में त्रिशूल धारण करते हैं.त्रिशूल भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है. शिव का त्रिशूल मानव शरीर में मौजूद तीन मूलभूत नाड़ियों बायीं, दाहिनी और मध्य का प्रतिबिंब है. ऐसा कहा जाता है कि इन नाड़ियों से होकर ही उर्जा की गति निर्धारित होती है और गुजरती है.त्रिशूल रज सत और तम का प्रतीक है. इन तीनों में सामंजस्य बैठाना बेहद जरूरी है और शिव का त्रिशूल इसी बात का प्रतीक है.
शिव का नीलकंठ
भगवान शिव को नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि समुद्र मंथन के दौरान जो जहर आया था, उसको उन्होंने निगल लिया था. जब देवी पार्वती ने देखा तो इस जहर को उनके गले में ही रोक दिया था और इस प्रकार यह नीले रंग में बदल गया. तब से उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा.
शिव का कुंडल
भगवान शिव दोनों कानों में कुंडल भी पहनें हुए रहते हैं. कहा जाता है कि प्रभु के बाएं कान का कुंडल महिला स्वरूप और दाएं कान का कुंडल पुरूष स्वरूप द्वारा इस्तेमाल किया गया है. दोनों कानों में विभूषित कुंडल शिव और शक्ति के रूप में सृष्टि के सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करते हैं.
बाघ की खाल
भगवान शिव बाघ की खाल बैठते हैं और इस खाल को पहनते भी है.जोकि यह दर्शाता है कि वह शक्ति के मालिक हैं और सभी शक्तियों से ऊपर हैं.शिव के बाघ की खाल को व्याघ्र हिंसा और अहंकार का प्रतीक माना जाता है.जिसका अर्थ है कि शिव ने हिंसा और अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा लिया है.
शिव की नंदी
प्रत्येक शिव मंदिर में नंदी मंदिर के बाहर स्थित रहते हैं.नंदी का सभी शिवगणों में प्रथम स्थान है और शंकर जी नंदी बैल को अपने वाहन के रूप में स्वीकार करते हैं.नंदी बैल भगवान शिव के करीबी विश्वासपात्रों में से एक है. कहा जाता है कि भगवान शिव के भक्त बैल के कान में अपनी इच्छाओं को कहते है, जो नंदी द्वारा महादेव तक पहुंच जाता है.
शिव का डमरू
डमरू भगवान शिव का वह वाद्य यंत्र है, जिसे अक्सर उनके त्रिशूल से बांधा जाता है. इसीलिए इन्हें डमरू-हस्त” कहा जाता है. डमरू भगवान शिव के प्रसिद्ध नृत्य नटराज का अभिन्न भाग है, जो शिव की प्रमुख विशेषताओं में से एक है.
शिव का त्रिपुंड
शिव जी के माथे पर 3 रेखाएं बनीं होती हैं. कहा जाता है कि यह तीनों लोकों का प्रतीक है. इसे रज, तम और सत गुणों का भी प्रतीक माना जाता है. पुराणों के अनुसार, दक्ष प्रजापति के यज्ञ कुंड में सती के आत्मदाह करने के बाद शिव जी ने उग्र रूप धारण किया था और माता सती की देह को कंधे पर लेकर त्रिलोक में हाहाकार मचाया था. तब भगवान विष्णु ने सती की देह को खंडित किया था,जिसके बाद शिव जी अपने माथे पर हवन कुंड की राख मली और इस तरह सती की याद को त्रिपुंड रूप में माथे पर स्थान दिया.
शिव का भस्म
इस दुनिया के सारे आकर्षण से भगवान शिव मुक्त हैं. उनके लिए ये दुनिया, मोह-माया सब कुछ एक राख से ज्यादा कुछ नहीं है. सब कुछ एक दिन भस्मीभूत होकर समाप्त हो जाएगा. भस्म इसी बात का प्रतीक है. भगवान शिव के शरीर पर लगी भस्म आकर्षण, मोह, अंहकार आदि से मुक्ति मिलने का प्रतीक माना जाता है.
शिव का मुंडमाला
शिव के गले में मुंडमाला है, जो इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में किया हुआ है.पुराणों के अनुसार मुंडमाला शिव और सती के प्रेम की भी प्रतीक है. जब सती ने अग्नि में कूदकर आत्मदाह किया था तब शिव क्रोधित होकर तांडव करने लगे थे. शिव ने सती को इसकी जानकारी पूर्व में दे दी थी. तभी शिव ने सती माता को मुंडमाला पहनने का राज बताया था.
कमंडल
भगवान शिव के पास एक कमंडल भी रहता है. कमंडल में जल होता है जो अमृत का प्रतीक है.यह संत और योगी द्वारा धारण किया जाता है.
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