Sawan Somwar: सावन के सोमवार पर शिव को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के उपाय किए जाते हैं. इनमें मंत्रों का जाप करना बहुत लाभकारी माना जाता है. माना जाता है कि शिव के मंत्रों का जाप करने से मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. शिव के मंत्र मनोकामनाओं की सिद्धि में सहायक होते हैं. मंत्रों के जाप से आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है. आइए जानते हैं शिव के शक्तिशाली मंत्र के बारे में जिसके जाप से महादेव की कृपा बरसती है.
शिव का शक्तिशाली मंत्र
महामृत्युंजय मंत्र को शिव का सबसे शक्तिशाली मंत्र माना जाता है. किसी भी प्रकार के भय से मुक्ति पाने के लिए, मृत्यु के भय से मुक्ति या शत्रु के भय से मुक्ति पाने के लिए इस मंत्र का जाप किया जाता है. सावन के महीने में सुबह के समय इस महामृत्युंजय मंत्र की एक माला का जाप करने हर प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है. इस मंत्र के जाप से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है. यह मंत्र इस प्रकार है.
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्. उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
शिव के इस मंत्र को बहुत ही शक्तिशाली कहा जाता है. कहते हैं कि इस शक्तिशाली मंत्र के अखंड जाप से मृत्यु भी दूर हो जाती है. एक पौराणिक कथा के अनुसार इस मंत्र की रचना ऋषि मार्कंडेय ने की थी.
शिव के अन्य सरल मंत्र
ॐ नमः शिवाय
ॐ शंकराय नमः
ॐ महादेवाय नमः
ॐ महेश्वराय नमः
ॐ श्री रुद्राय नमः
ॐ नील कंठाय नमः
भगवान रुद्र को प्रसन्न करने के श्लोक
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् .
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् .
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् .
करालं महाकाल कालं कृपालं.
गुणागार संसारपारं नतोऽहम्.
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् .
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा .
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि।।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम।
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्।।
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी।।
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम्।।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम्
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो।।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ।।
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