Shani Dev: शनि देव को कलियुग में एक प्रभावी ग्रह माना गया है. ज्योतिष शास्त्र में शनि देव को सभी नवग्रहों में अहम स्थान प्राप्त है. शिव भक्त शनि देव को सभी ग्रहों में दंडाधिकारी होने का दर्जा प्राप्त है. इसीलिए शनि की दृष्टि को कष्टकारी बताया गया है. ऐसा माना जाता है कि शनि की दृष्टि से मनुष्य ही देवता भी प्रभावित होते हैं. शनि के प्रकोप से पिशाच भी घबराते हैं. ज्योतिष शास्त्र में शनि को एक क्रूर ग्रह माना गया है.
शनि देव जब जन्म कुंडली में अशुभ स्थिति में होते हैं तो जीवन को कष्टों से भर देते हैं, व्यक्ति को परेशानी और बाधाओं से मुक्ति नहीं मिल पाती है. निरंतर जीवन में कोई न कोई दिक्कत बनी ही रहती है. इसीलिए शनि देव को शांत रखने की सलाह दी जाती है. शनि शांत रहते हैं तो जीवन में सुख और शांति बनी रहती है.
शनिवार के दिन शनि देव को करें प्रसन्न
शनिवार का दिन शनि देव को समर्पित है. इस दिन विशेष पूजा करने से शनि देव बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं. शनिवार के दिन शनि देव की विधि पूजा करनी चाहिए, इसके साथ ही शनि देव से जुड़ी चीजों का दान करने से भी शनि की अशुभता दूर होती है.
इन 5 राशियों को देना चाहिए विशेष ध्यान
शनि देव को प्रसन्न रखने के लिए शनि चालीसा का पाठ अत्यंत उत्तम बताया गया है. शनि चालीसा का पाठ शनिवार के दिन करने से शनि देव बहुत जल्द अच्छे फल प्रदान करते हैं, और परेशानियों को दूर करते हैं. जिन लोगों पर शनि की दशा, ढैय्या और शनि की साढ़ेसाती चल रही है उन लोगों को शनिवार के दिन शनि चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए. इस समय मिथुन राशि और तुला राशि पर शनि की ढैय्या और धनु, मकर और कुंभ राशि पर साढ़ेसाती चल रही है.
शनि वक्री 2021 (Shani Vakri 2021)
वर्तमान समय में शनि का गोचर मकर राशि में है. शनि मकर राशि में ही वक्री हैं. यानि शनि उल्टी चाल चल रहे हैं.
शनि चालीसा (Shani Chalisa in Hindi)
जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति-मति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजी-मीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देव-लखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी। सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
दोहा
पाठ शनिश्चर देव को, की हों 'भक्त' तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥