Shani ka Paya: ज्योतिष में शनि के राशि परिवर्तन या चाल परिवर्तन का बहुत ही महत्व होता है. शनि परिवर्तन से साथ ही शनि का पाया भी बदल जाता है. ज्योतिष में शनि के चार पाया (शनि के चार चरण) बताया गया है. शनि के पाए शुभ और अशुभ प्रभाव डालते हैं.


ऐसे बनता है शनि का पाया


बच्चे के जन्म के समय जन्मकुंडली में चन्द्र राशि से शनि जिस भाव में स्थित होता है (कुंडली में) उसी के अनुसार उसका पाया होता है. बच्चे के जन्म कुण्डली में चन्द्रमा तथा शनि को आधार बनाकर शनि के पाया तथा पाया के फलों का निर्धारण किया जाता है.


शनि के पाया के प्रकार


धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक शनि के चार पाया या चार चरण होते है. जो कि निम्नलिखित प्रकार के होते हैं.



  1. सोने का पाया : शनि गोचर के समय चंद्रमा यदि 1, 6 और 11वें भाव में विराजमान है, तो सोने का पाया कहा जाता है. स्वर्ण का पाया बहुत शुभ नहीं होता.

  2. चांदी का पाया: शनि गोचर के समय जब चंद्रमा, शनि से 2, 5 और 9 वें भाव में होता है, तो यह चांदी का पाया कहा जाता है. ज्योतिष में इसे बहुत शुभ माना जाता है.

  3. तांबे का पाया : चंद्रमा यदि शनि से 3, 7, 10वें भाव में हो तो इस स्थिति को ताम्रपाद या तांबे का पाया कहा जाता है. तांबे का पाया बहुत शुभ होता है.

  4. लोहे का पाया: चंद्रमा यदि शनि से 4, 8 और 12वें भाव में विराजमान हों, तो इस स्थिति को लोहे का पाया कहा जाता है. ज्योतिष शास्त्र में लोहे के पाया को कम शुभ माना जाता है.


शनि पाया का प्रभाव


सोने और लोहे के पाया के प्रभाव से जातक जीवन में सुख सुविधा का उपभोग मुश्किल से कर पाते हैं. धन-धान्य की हानि होती है. पारिवारिक स्थिति भी ठीक नहीं होती है. जबकि चांदी और तांबे के पाया के असर से जातक के घर में खुशियों का आगमन होगा. सभी रूके हुए कार्य शीध्र ही पूरे होने लगते हैं. व्यापार में वृद्धि और सुखसमृद्धि में बढ़ोत्तरी होती है.


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