Shani Sadhe Sati: शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या और व्याधियों से राहत के लिए पढ़ें यह स्त्रोत
Shani Sade Sati effect: न्याय के देवता शनि देव महाराज की कुदृष्टि पड़ते ही शारीरिक, मानसिक और आर्थिक कष्ट प्रारंभ हो जाते हैं.
Mahakal Shani Mrityunjaya Stotra Path: सूर्यपुत्र शनिदेव (Shani Dev) महाराज इस चराचर जगत में न्याय के देवता का अधिकार रखते हैं. सभी मनुष्यों को उनके कर्मों के हिसाब से शुभ अशुभ फल प्रदान करते हैं. शनि की कुदृष्टि (Shani Prakop) से बचने के लिए लोगों को शनि देव (Shani Dev) महाराज को प्रसन्न रखना चाहिए. शनि की चाल बहुत धीमी होती है. यह एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने में कम से कम ढाई साल का समय लेते हैं.
शनि की साढ़ेसाती (Shani Sade sati) और ढैय्या (Shani Dhaiya) के प्रकोप से लोगों में संशय बना रहता है. आर्थिक, शारीरिक और सामाजिक नुकसान होता है. शनि की साढ़ेसाती तीन चरण में पूरी होती है और ढैय्या ढाई साल के लिए लगती है. शनि की इन महादशाओं (shani ki mahadasha) से बचने के लिए महाकाल शनि मृत्युंजय स्त्रोत का पाठ (Mahakal Shani Mrityunjaya Stotra Path) किया जाता है.
महाकाल शनि मृत्युंजय स्तोत्र (Mahakal Shani Mrityunjaya Stotra)
ॐ ह्रीं श्रीकालरुपिं नमस्तेस्तु सर्वपापप्रणाशक:। त्रिपुरस्य वधार्थाय शंभुजाताय ते नम:।।
ॐ कालशरीराय कालन्नुनाय ते नम:। कालहेतो नमस्तुभ्यं कालनंदाय वै नम:।।
ॐ अखंडदंडमानाय त्वनाद्यन्ताय वै नम:। कालदेवाय कालाय कालकालाय ते नम:।।
ॐ निमेषादि महाकल्प कालरुपं च भैरवं। मृत्युंजयं महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम्।।
ॐ दातारं सर्वभव्यानां भक्तानां अभयंकरं। मृत्युंजयं महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम्।।
ॐ कर्तारं सर्वदु:खानां दुष्टानां भयवर्धनं। मृत्युंजयं महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम्।।
ॐ सर्वेषामेव भूतानां सुखदं शांतिमव्ययं। मृत्युंजयं महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम्।।
ॐ कारणंसुखदु:खानां भावाभावस्वरुपिणं। मृत्युंजयं महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम्।।
ॐ अकालमृत्युहरणं अपमृत्युनिवारणं। मृत्युंजयं महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम्।।
ॐ कालरुपेण संसारं भक्षयंतं महाग्रहं। मृत्युंजयं महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम्।।
ॐ दुर्निरिक्ष्यं स्थूलरोमं भीषणं दीर्घलोचनं। मृत्युंजयं महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम्।।
ॐ ग्रहाणं ग्रहभूतं च सर्वग्रह निवारणं। मृत्युंजयं महाकालं नमस्यामि शनैश्चरम्।।
ॐ कालस्यवशगा: सर्वेन काल: कस्यचित वश:। तस्मात्वां कालपुरुषं प्रणतोस्मि शनैश्चरम्।।
ॐ कालदेव जगत्सर्वं कालएव विलीयते। कालरुपं स्वयं शंभु: कालात्मा ग्रहदेवतां।।
ॐ चंडीशो रुद्र डाकिन्याक्रांत: चंडीश उच्यते। विद्युदाकलितो नद्यां समारुढो रसाधिप:।।
ॐ चंडीश: शुकसंयुक्तो जिव्ह्या ललित:पुन:। क्षतजस्तामशी शोभी स्थिरात्मा विद्युतयुत:।।
ॐ ह्रीं नमोन्तो मनुरित्येष शनितुष्टिकर: शिवे। आद्यंते अष्टोत्तरशतं मनुमेनं जपेन्नर:।।
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