Shattila Ekadashi Vrat: षटतिला एकादशी का व्रत 18 जनवरी को किया जाएगा. इस दिन तिल से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. इस दिन दान-दक्षिणा का भी विशेष महत्व होता है.


षटतिला एकादशी के दिन तिल का विशेष महत्व होता है. इस दिन 6 तरह से तिलों का उपयोग किया जाता है. इसमें तिल से स्नान, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन, तिल से तर्पण, तिल का भोजन और तिलों का दान किया जाता है. इस दिन तिल का 6 तरीके से उपयोग किए जाने पर ही इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है. इस दिन अन्नदान करना भी बहुत शुभ होता है. आइए जानते हैं षटतिला एकादशी के दिन अन्नदान क्यों किया जाता है और इसके पीछे की पौराणिक मान्यता क्या है.


षटतिला एकादशी की पौराणिक कथा


धार्मिक मान्यता के अनुसार एक बार नारद मुनि भगवान विष्णु के धाम बैकुण्ठ पहुंचे और उनसे षटतिला एकादशी व्रत के महत्व के बारे में पूछा. भगवान विष्णु ने बताया कि, प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मण की पत्नी रहती थी. उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी. वह मेरी बड़ी भक्त थी और पूरी श्रद्धा भाव से मेरी पूजा करती थी.


एक बार उसने एक महीने तक व्रत रखकर मेरी उपासना की. वो महिला व्रतो पूरी श्रद्धाभाव से रखती थी लेकिन कभी भी ब्राह्मण एवं देवताओं को अन्न दान नहीं करती थी. एक दिन मैं स्वयं उसके पास भिक्षा मांगने गया लेकिन उसने मेरे हाथों पर एक मिट्टी का पिण्ड रख दिया. मैं वह पिण्ड लेकर अपने धाम लौट आया. कुछ समय बाद महिला की मृत्यु हो गई और वह मेरे लोक में आ गई. 


परलोक पहुंचने के बाद महिला को वहां एक कुटिया और आम का पेड़ मिला. खाली कुटिया को देखकर वह घबरा गई और विष्णु भगवान को बोली कि, मैं तो धर्मपरायण हूं और आपकी इतनी बड़ी भक्त हूं फिर भी मुझे खाली कुटिया क्यों मिली?


तब भगवान ने उसे बताया कि अन्नदान नहीं करने और उन्हें मिट्टी का पिण्ड देने से ऐसा हुआ है. उन्होंने महिला को बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं तब आप अपना द्वार तभी खोलना जब तक वे आपको षटतिला एकादशी के व्रत का विधान न बताएं.


विधवा महिला ने ऐसा ही किया और जिन विधियों को देवकन्या ने कहा था उस विधि से षटतिला एकादशी का व्रत किया. व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया अन्न धन से भर गई. विष्णु भगवान ने कहा इसलिए हे नारद इस बात को सत्य मानों कि, जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है और तिल और अन्नदान करता है उसे मुक्ति और वैभव की प्राप्ति होती है.


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