Sheetala Ashtami Bhog: शीतला अष्टमी का पर्व होली के आठवें दिन या होली के बाद पहले सोमवार को मनाया जाता है. चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला माता की पूजा की जाती है. मान्यता है कि शीतला माता बच्चों की सेहत की रक्षा करती है और धन-संपत्ति का आशीर्वाद देती हैं. शीतला माता देवी की तरह होती है जो गधे पर सवार होती है और नीम के पत्तों की माला का श्रृंगार करती हैं.
इस दिन घर में बासी पुआ, पूड़ी, दाल भात और मिठाई का भोग लगाया जाता है. इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलता. शीतला माता को भोग लगाने के बाद घर के सदस्य खुद इसका सेवन करते हैं. आइए जानते हैं कि आखिर इस दिन शीतला माता को बासी खाने का भोग क्यों लगाया जाता है. शीतला अष्टमी का पर्व 15 मार्च को मनाया जाएगा.
शीतला अष्टमी पर क्यों लगता है बासी खाने का भोग
शीतला अष्टमी पर शीतला माता को बासी खाने का भोग लगाया जाता है. इस व्रत में घर में ताजा भोजन नहीं पकाया जाता है बल्कि एक दिन पहले बनाए गए भोजन को ही प्रसाद के रूप में खाया जाता है. इसके पीछे एक पौराणिक मान्यता है. स्कंद पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि को स्वस्थ व रोगमुक्त रखने का जिम्मा शीतला माता को दिया था. यही वजह है कि लोग गर्मी के प्रकोप से बचने और संक्रामक रोगों से मुक्त रहने के लिए शीतला माता की पूजा करते हैं.
मान्यता है कि शीतला माता को बासी भोजन काफी प्रिय है. शीतला अष्टमी के दिन लोग बासी भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. अष्टमी के दिन के घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है और उस दिन रात में बने भोजन को ही ग्रहण करने का रिवाज है.
शीतला अष्टमी पर बासी खाने का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शीतला माता की पूजा करने से चिकन पॉक्स यानी माता, खसरा, फोड़े और नेत्र रोग नहीं होते है. शीतला माता को चेचक की देवी माना जाता है. उन्हें सफाई का प्रतीक माना जाता है जो ताप या अग्नि उत्पन्न करने वाले रोगों से मुक्त करती हैं. संक्रामक रोगों से बचाव के लिए शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है.
वैज्ञानिक कारण की बात करें तो इस समय ठंड जाने और गर्मी के मौसम के आने का समय है. इन दो ऋतुओं के संधिकाल में खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए. सर्दी और गर्मी की वजह से कई तरह की मौसमी बीमारियों के होने का खतरा रहता है. इसलिए आज के दिन ठंडा खाना खाने की परंपरा है.
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