Solar Eclipse 2023: विज्ञान के अनुसार जानिए आखिर कैसे लगता है सूर्य को ग्रहण?
Solar Eclipse 2023: विज्ञान की नजर में सूर्य ग्रहण तब लगता है, जब एक खगोल काय जैसे चंद्रमा अथवा ग्रह किसी अन्य खगोल काय की छाया के बीच आ जाता है. इसलिए ग्रहण को विज्ञान में खगोलीय घटना माना जाता है.
Solar Eclipse 2023 and Science: पृथ्वी पर मुख्य रूप से दो प्रकार के ग्रहण लगते हैं. एक सूर्य ग्रहण और दूसरा चंद्र ग्रहण. धार्मिक दृष्टिकोण से ग्रहण लगने की घटना का संबंध समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी है. इसके अनुसार ग्रहण लगने का जिम्मेदार राहु-केतु को माना जाता है. वहीं ज्योतिष के अनुसार ग्रहण का प्रभाव ग्रह-नक्षत्र और राशियों पर पड़ता है.
लेकिन बात करें विज्ञान की तो, विज्ञान की नजर में ग्रहण को महत्वपूर्ण खगोलीय घटना माना जाता है. यह खासकर तब घटित होती है, जब एक खगोल-काय जैसे कि चंद्रमा या ग्रह किसी अन्य खगोल-काय की छाया के बीच में आ जाता है. इस साल 20 अप्रैल को सूर्य ग्रहण लग रहा है, जोकि हाइब्रिड सूर्य ग्रहण होगा. हाइब्रिड सूर्य ग्रहण उसे कहते हैं, जो आंशिक, पूर्ण और कुंडलाकार सूर्य ग्रहण का मिश्रण होता है. ऐसा ग्रहण सौ साल में एक बार लगता है.
कब लगता है सूर्य को ग्रहण
विज्ञान के अनुसार, सूर्य ग्रहण सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा के आने के कारण होता है. जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में आता है तो पृथ्वी से सूर्य का प्रकाश वाला भाग दिखाई नहीं देता और उस समय पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश न पड़कर चंद्रमा की परछाई नजर आने लगती है. इसी स्थिति को सूर्य ग्रहण कहा जाता है.
विज्ञान की नजर में सूर्य ग्रहण
- चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर एक कक्षा में परिक्रमा करता है और उसी समय पृथ्वी भी सूर्य की परिक्रमा करती है. परिक्रमा के दौरान कभी-कभी चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है. खगोलशास्त्र और विज्ञान में इसे ही सूर्य ग्रहण कहा जाता है.
- जब चंद्रमा, सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है तो इस दौरान सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाता और पृथ्वी की सतह के कुछ हिस्से पर दिन में भी शाम य रात की तरह अंधेरा सा छा जाता है.
- सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या के दिन ही लगता है. क्योंकि अमावस्या में चंद्रमा पृथ्वी के कक्षीय समतल के निकट होता है.
- सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं. आंशिक सूर्य ग्रहण, वलयाकार सूर्य ग्रहण और पूर्ण सूर्य ग्रहण.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण में सूर्य ग्रहण
- वैज्ञानिकों का मानना है कि, संपूर्ण सूर्य ग्रहण की वास्तविक अवधि ज्यादा से ज्यादा 11 मिनट ही हो सकती है, लेकिन उससे अधिक नहीं.
- चंन्द्र ग्रहण को अपने संपूर्ण तत्कालीन प्रकाश क्षेत्र में भले ही देखा जा सकता है लेकिन सूर्य ग्रहण को अधिकतम 10 हजार किलोमीटर लंबे और 250 किलोमीटर चौड़े क्षेत्र में ही देखा जा सकता है.
- ग्रहण ऐसा समय है जब ब्राह्मंड में अनेकों विलक्षण और अद्भुत घटनाएं घटित होती है, जो कि वैज्ञानिकों के लिए एक अवसर के समान है. इसलिए ग्रहण समय वैज्ञानिकों को नये-नये तथ्यों पर काम करने का मौका मिलता है.
सूर्य ग्रहण से अधिक होते हैं चंद्र ग्रहण
साल में लगने वाले सूर्य ग्रहण से चंद्र ग्रहण की संख्या अधिक होती है. विज्ञान में इसका कारण बताते हुए कहा गया है कि, चंद्र ग्रहण पृथ्वी के आधे से अधिक भाग से दिखाई पड़ते हैं. वहीं सूर्य ग्रहण पृथ्वी के बहुत बड़े भाग में सौ मील से कम चौड़े या दो-तीन हजार मील लंबे भूभाग से दिखाई पड़ते हैं. 20 अप्रैल को भी लगने वाला सूर्य ग्रहण पूर्ण सूर्य ग्रहण नहीं है, इसलिए इसे धरती में बहुत कम क्षेत्रों में देखा जा सकेगा. भारत में भी यह सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देगा.
सूर्य ग्रहण लगने के लिए दो चीजें आवश्यक है-
- अमावस्या का दिन होना चाहिए.
- चंद्रमा का अक्षांश शून्य के निकट होना चाहिए.
ये भी पढ़ें: Solar Eclipse 2023: सूर्य ग्रहण की नेगेटिव एनर्जी से कैसे बचा जाए, जानें इसके पौराणिक और वैज्ञानिक मान्यताएं
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.