Solar Eclipse 2023, Rahu-Ketu vs Science: हिंदू धर्म में राहु-केतु का जिक्र हमेशा ही मिलता है. ज्योतिष में इसे छाया ग्रह तो शास्त्रों में राहु-केतु असुर माना जाता है. वहीं सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण लगने से जुड़ी समुद्र मंथन की पौराणिक कथा में भी राहु-केतु का नाम आता है और ग्रहण लगने का जिम्मेदार राहु-केतु को ही माना जाता है.


केतु का सिर नहीं है तो राहु का धड़ नहीं


आमतौर पर राहु-केतु का नाम सुनकर ही लोग डर जाते हैं. क्योंकि जिनकी कुंडली में राहु-केतु गलत स्थान पर बैठ जाए, उसके जीवन में भूचाल ला देते हैं. कहा जाता है कि राहु और केतु दोनों असुर हैं और दोनों एक ही शरीर से जन्मे हैं. सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु कहलाता है. हालांकि कुछ ज्योतिषों द्वारा इन्हें रहस्यवादी ग्रह भी माना जाता है.



विज्ञान में कौन हैं राहु-केतु


राहु केतु की उत्पत्ति से जुड़े धार्मिक आधार के साथ ही इसका वैज्ञानिक आधार भी है. सौरमंडल में 9 ग्रह सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि और राहु ,केतु हैं. इसके अलावा विज्ञान में तीन अन्य ग्रह हर्षल, नेपच्यून और प्लूटो की भी खोज की जा चुकी है. लेकिन सूर्य से अधिक दूरी होने के कारण इन ग्रहों को प्रभावी नहीं माना जाता है. सूर्य केंद्र बिंदू है और सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर एक निश्चित दूरी में रहकर परिक्रमा करते हैं. सूर्य के सबसे नजदीक बुध ग्रह है, जिसकी दूरी लगभग 5 करोड किलोमीटर बताई जाती है और सूर्य से सबसे दूर शनि ग्रह है जिसकी दूरी लगभग 1 अरब किलोमीटर से भी अधिक है. वहीं पृथ्वी सूर्य से दूर चौथा ग्रह है जोकि लगभग 15 करोड़ किलोमीटर दूर है.


इसी तरह चंद्रमा जोकि पृथ्वी से करीब 4 लाख किलोमीटर दूर है और प्रतिघंटा 3660 किलोमीटर की गति से पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है. इसकी गति के विपरीत दिशा में भी एक बल कार्य करता है, जो उसकी कक्षा में निहित हो जाता है. इस तरह से गति निरंतर है और बल की उत्पत्ति होती रहती है. स्पष्ट है कि सूर्य की परिक्रमा करती पृथ्वी की कक्षा में और पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए चंदमा के कक्षा परिक्रमा पथ में दोनों में चंद्रमा और पृथ्वी की गति के कारण बलों से कक्षा चार्ज होता है.



  • विज्ञान के अनुसार राहु- जहां पृथ्वी की कक्षा का परिक्रमा पथ और चंद्रमा की कक्षा का परिक्रमा पथ एक-दूसरे को काटते हैं उसी स्थान पर राहु की उत्पत्ति होती है. वैज्ञानिक आधार पर कहें तो, स्पष्ट और सिद्ध है कि जब दो बल मिलते हैं और एक दूसरे को काटते हैं या टकराते हैं तो एक नए बल की उत्पत्ति होती है. इस नए बल की तीव्रता दोनों बलों से भी अधिक होती है. प्रारम्भिक काल में कटाव बिंदु पर एक विस्फोटक स्थिति पैदा हुई थी जिससे एक विशाल ऊर्जा की उत्पत्ति हुई थी जो हजारों किलोमीटर फैल गई और एक विशाल पुंज के रूप ग्रह की उत्पत्ति हुई जिसे राहु ग्रह का नाम दिया गया, जोकि तीव्र ऊर्जाओं का क्षेत्र है जिसका कोई धरातल रंग नहीं है और ना ही इसमें कोई तत्व है.

  • विज्ञान के अनुसार केतु- राहु के बाद बात करें केतु की तो, ठीक इसी तरह से दूसरे बिंदु पर केतु की उत्पत्ति हुई. इसे छाया ग्रह माना गया है, जिसका प्रभाव पृथ्वी से नजदीक होता है. इसलिए इसे प्रभावशाली माना जाता है. प्रचंड ऊर्जा से निर्मित राहु जब दूसरे ग्रहों की युति में या दृष्टि में आता है तो यह उस ग्रह को भी शक्ति देकर उसके बल को दोगुना या चोगना भी कर देता है. अगर यह ग्रह शुभ है तो केतु उसकी शुभता को बढ़ा देगा और अशुभ है तो केतु के प्रभाव से उसकी अशुभता बढ़ जाती है.


धार्मिक दृष्टि से जानें कौन हैं राहु-केतु (Rahu Ketu Story in Hindi)


हिंदू धर्म में राहु और केतु की उत्पत्ति को आदिकाल में समुद्र मंथन की पौराणिक कहानी से जोड़ा जाता है. इसके अनुसार जब देवताओं और राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो इससे कई बहूमूल्य रत्नों के साथ अमृत कलश भी प्राप्त हुआ. लेकिन अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच विवाद हो गया.


तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर देवताओं को पहले अमृत पान कराया. देवताओं की पंक्ति में रूप बदलकर एक राक्षस भी बैठ गया और उसने छल से अमृतपान कर लिया. लेकिन सूर्य और चंद्रमा ने उस राक्षस को पहचान लिया और भगवान विष्णु को इस बारे में बता दिया. क्रोधित होकर भगवान विष्णु ने उसी समय उस राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया.


लेकिन अमृतपान कर लेने के कारण उसकी मृत्यु नहीं हुआ और इसी राक्षस से राहु और केतु की उत्पत्ति हुई. इसलिए कहा जाता है कि राहु और केतु एक ही राक्षस के शरीर से जन्मे हैं. इसी राक्षस के सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु कहलाया.


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