वास्तुशास्त्र जीवनोपयोगी विषय है. ब्रह्मांड की उूर्जा का सतत प्रवाह पर संतुलन सिखाता है. कपड़े जीवन का महत्वपूर्ण अंग हैं. व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं. लोग महंगे से महंगे वस्त्रों का प्रयोग करते हैं. उन्हें संभालने के जतन करते हैं. सुव्यवस्थित वार्डरोब बनवाते हैं. इन वार्डरोब की दिशा में अक्सर चूक होने की आशंका रहती है. इससे वस्त्र लंबे समय तक नए और आकर्षक नहीं रह पाते हैं.

वार्डरोब बनाते समय इस बात का स्पष्ट ध्यान रखा जाना चाहिए कि यह दक्षिण-पूर्व दिशा में हो. इसे रसोई की दिशा भी माना जाता है. यह दिशा गर्म दिशा मानी जाती है. ऐसे में यहां कपड़ों में नमीं बैठने, फंगस से प्रभावित होने अथवा कीट प्रकोप की आशंका कम रहती है.

इसके अतिरिक्त इस दिशा में वास्तु नियमों के अनुसार हवा का असर भी सीमित रहता है. इससे कपड़े लंबे समय तक जस के तस बने रहते हैं. इस बात का विशेष ध्यान रखें कि कपड़े धूप में अधिक न रहें. इस दिशा में सूर्य की प्रबलता रहती है. वार्डरोब को पूरी तरह कवर्ड और व्यस्थित बनाएं.


वार्डरोब में कपड़ों को इंद्रधनुष के रंगों के क्रम में वार्डरोब में क्रमशः पूर्व से दक्षिण की रखें. इस उपाय से आप अपने वस्त्रों को वास्तु अनुरूप रखकर दशकों बाद भी प्रयोग में ला सकते हैं. ध्यान रहे कपड़ों को राहू की दिशा अर्थात् दक्षिण-पश्चिम में न रखें. इससे वे पहनने में आ ही नहीं पाते हैं. सालों साल टंगे ही रह जाते हैं.