Spirituality, Aghori, Life Mysterious Aspects: कुछ शब्द ऐसे होते हैं जो कानों में पड़ते ही एक ऐसी छवि को जेहन में पेश करते हैं जिन्हें समझना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. लेकिन ये आकृर्षित करते हैं. अघोर या अघोरी शब्द के साथ भी ऐसा ही है. अघोरी शब्द का संस्कृत में अर्थ ‘उजाले की ओर’ बताया गया है.


वहीं अघोर का मतलब अ+घोर यानी जोकि घोर नहीं हो और सरल हो. हालांकि इनका स्वरूप वास्तव में डरावना होता है. लेकिन अध्यात्म की भाषा में अघोर बनने की पहली क्रिया मन से घृणा को निकालना होता है. मूलत: अघोरी शमशान जैसी जगहों पर सहजता से रहते हैं और तंत्र क्रियाएं सीखते हैं. सामन्यत: समाज जिन चीजों से घृणा करता है, अघोरी उसे अपनाते हैं.


श्वेताश्वतरोपनिषद में भगवान शिव को अघोरनाथ कहा गया है. अघोरी बाबा भी शिवजी के इस रूप की उपासना करते हैं. बाबा भैरवनाथ भी अघोरियों के अराध्य हैं. जानते हैं अघोरियों की रहस्यमी दुनिया से जुड़े अनजाने पहलू के बारे में. कौन हैं अघोरी, ये क्या खाते हैं, इनका जीवन कैसा है और वो बातों जो अघोरियों को अन्य साधकों से अलग बनाती है.


भगवान शिव को अघोर पंत का प्रणेता माना गया है. शिवजी के अवतार अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरु माना गया है. अघोर संप्रदाय शिव जी के अनुयायी होते हैं. इनके अनुसार शिव जी स्वयं में संपूर्ण हैं और समस्त रूपों में विद्यमान हैं.




जानिए अघोरियों के काम और साघना


अघोरी खाते हैं कच्चा मांस-  कहते हैं कि अघोरियों ने खुद इस बात को माना है कि वे शमशान में रहते हैं और अधजले शवों को निकालकर उसका मांस खाते हैं. हालांकि ये बात आम जनमानस को वीभत्स लग सकती है लेकिन इसके पीछे माना जाता है कि ऐसा करना अघोरियों की तंत्र क्रिया की शक्ति को प्रबल बनाता है. 


शिव और शव उपासक होते हैं अघोरी- शिव के पांच रूपों में एक ‘अघोर’ भी है. अघोरी भी शिव जी के उपासक होते हैं और शिव साधना में लीन होते हैं. इसके साथ ही ये शव के पास बैठकर भी साधना करते हैं. क्योंकि ये शव को शिव प्राप्ति का मार्ग कहते हैं. ये अपनी साधना में शव के मांस और मदिरा का भोग लगाते हैं. एक पैर पर खड़े होकर शिव जी की साधना करते हैं और शमशान में बैठकर हवन करते हैं.


शव के साथ बनाते हैं शारीरिक संबंध- शव के साथ अघोरी बाबाओं के शारीरिक संबंध बनाने की प्रचलित धारणा है और खुद अघोरी भी इस बात को स्वीकार करते हैं. इसे वह शिव और शक्ति की उपासना का तरीका मानते हैं. उनका मानना है कि यदि शव के साथ शारीरिक क्रिया के दौरान यदि मन ईश्वर की भक्ति में लगा रहे तो यह साधना का सबसे ऊंचा स्तर है.


ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते अघोरी- अन्य साधु-संत जहां ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, वहीं अघोरी ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते हैं. केवल शव ही नहीं बल्कि जीवितों के साथ भी अघोरी संबंध बनाते हैं. ये शरीर पर राख लपेटकर और ढोल नगाड़ों के बीच शारीरिक संबंध बनाते हैं. इतना ही नहीं जब महिला का मासिक चल रहा होता है, तब ये खासतौर से शारीरिक संबंध बनाते हैं. यह क्रिया भी साधना का ही अंग मानी जाती है. माना जाता है इससे अघोरियों की शक्ति बढ़ती है.


नरमुंड धारण करते हैं अघोरी- अघोरी अपने पास हमेशा नरमुंड यानी इंसानी खोपड़ी को रखते हैं, इसे ‘कापालिका’ कहा जाता है. शिव के अनुयायी होने के कारण अघोरी नरमुंड रखते हैं और इसका प्रयोग वे अपने भोजन पात्र के रूप में करते हैं. इसके पीछे यह मान्यता है कि, एक बार शिवजी ने ब्रह्मा जी का सिर काट दिया था और उनके सिर को लेकर पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगाए थे.


अघोरियों की रहस्यामयी दुनिया



  • अघोरी हिंदू धर्म का ही एक अंग है. इसलिए इन्हें अघोरी संप्रदाय या अघोर पंत कहा जाता है.

  • अघोरी देशभर में हैं. लेकिन काशी और वाराणसी में सबसे अधिक अघोरी मिलते हैं.

  • औघड़, सरभंगी और घुरे अघोरियों की ये तीन शाखाएं होती हैं.

  • किनाराम अघोरी को अघोरियों का बाबा कहा जाता है. ये कालूराम के शिष्य थे.

  • किनाराम बाबा अघोरी ने गीतावली, विवेकसार और रामगीता की रचना ही. कीनाराम का देहांत 1826 में हुआ था.


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