Surdas Jayanti 2023: 25 अप्रैल 2023 को सूरदास जी की जयंती है. सूरदाज जी को भगवान कृष्ण का परम भक्त कहा जाता है. हिन्दी साहित्य में भगवान श्रीकृष्ण के उपासक और ब्रजभाषा के महत्वपूर्ण कवि महात्मा सूरदास का इस साल 545वां जन्मदिवस मनाया जाएगा. इस दिन कृष्ण भक्त और संगीत और कविताओं से प्रेम करने वाले लोग सूरदास जी को याद उनकी कविताएं, दोहे और गीत गाते हैं.
श्रीकृष्ण का पूजन करते हैं. सूरदास जी का जन्मोत्सव हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. आइए जानते हैं सूरदाय जी के प्रसिद्ध दोहे जिसमें जीवन का रहस्य छिपा है, जो व्यक्ति को सफलता और सुख भरी जिंदगी का मार्ग दिखाता है.
सूरदास जी के दोहे (Surdas Ji Dohe)
अबिगत गति कछु कहति न आवै।ज्यों गुंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै।।
परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै। मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै।।
अर्थ - सूरदास जी इस दोहे में कहते हैं कि कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें व्यक्ति मन ही मन समझ सकता है और उसका आनंद बाकी अन्य चीजों से बेहतर है. जैसे किसी गूंगे को यदि मिठाई खिला दी जाए, तो वह उसके स्वाद का वर्णन नहीं कर सकता लेकिन उसके स्वाद का वह पूरी तरह आनंद उठाता है. वैसे ही ईश्वर दिखाई नहीं देता लेकिन उसकी सच्ची भक्ति करने वालों को जीवन में सुख और सफलता जरुर प्राप्त होती है.
चरण कमल बंदो हरि राई। जाकी कृपा पंगु लांघें अंधे को सब कुछ दरसाई।
बहिरो सुनै मूक पुनि बोले रंक चले छत्र धराई। सूरदास स्वामी करुणामय बार-बार बंदौ तेहि पाई।।
अर्थ - इस दोहे में सूरदाज जी ने कान्हा की महीमा का वर्णन किया है. वह कहते है जिस पर श्री कृष्ण की कृपा हो जाए वह लंगड़ा व्यक्ति भी पहाड़ लांघ सकता है, अंधे को सब कुछ दिखाई देने लगता है, बहरे को सब कुछ सुनाई देने लगता है और गूंगा व्यक्ति बोलने लगता है. गरीबा धनवान हो जाता है. मनुष्य ईश्वर को पाने के लिए तमाम जतन करता है लेकिन जो पूरी निष्ठा के साथ कृष्ण को याद करते हैं सिर्फ उन्हें ही ये लाभ मिल पाता है.
कह जानो कहँवा मुवो, ऐसे कुमति कुमीच। हरि सों हेत बिसारिके, सुख चाहत है नीच॥
अर्थ - सूरदास जी इस दोहे के जरिए मनुष्य के उस कड़वे सच को बयां कर रहे हैं जिसका सामना कलियुग में हर व्यक्ति कर रहा है. वह कहते हैं यह मनुष्य जाने कैसा दुष्ट बुद्धि वाला है, जो यह भगवान से प्रेम और भक्ति को छोड़कर संसार के मोह-माया के पीछे भाग रहा है. जो असली सुख कृष्ण की भक्ति में है वह सृष्टि के किसी तत्व में नहीं.
मीन वियोग न सहि सकै, नीर न पूछै बात। देखि जु तू ताकी गतिहि, रति न घटै तन जात॥
सूरदास जी कहते हैं चाहे पानी मछली की बात भी नहीं पूछता फिर भी मछली पानी का वियोग नहीं सह सकती, मछली के प्रेम की निराली गति को देखो कि इसका शरीर चला जाता है तो भी उसका पानी के प्रति प्रेम रत्ती-भर भी कम नहीं होता. कहने का अर्थ है अपनी जड़ों को कभी नहीं छोड़ना चाहिए निस्वार्थ भाव से धर्म, कर्म के काम करने वालों को कभी दुख और दरिद्रता का मुंह नहीं देखना पड़ा.
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