Surdas Jayanti: हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सूरदास जयंती मनाई जाती है. इस साल सूरदास जयंती 25 अप्रैल यानी आज मनाई जा रही है. सूरदास जी एक महान कवि और संगीतकार थे. उनका जन्म मथुरा के रुनकता गांव में हुआ था. सूरदास श्रीकृष्ण के परम भक्त थे. उन्होंने जीवनपर्यंत भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति की और ब्रज भाषा में उनकी लीलाओं का वर्णन किया. कान्हा की भक्ति में उन्होंने कई गीत, दोहे और कविताएं लिखी हैं.  प्रभु श्रीकृष्ण का गुणगान करते हुए उन्होंने सूर सागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी जैसी महत्वपूर्ण रचनाएं कीं. 


जन्म से अंधे थे सूरदास


सूरदास जी ब्राह्मण थे. उनके पिता का नाम रामदास गायक जबकि उनके गुरु का नाम श्री वल्लभाचार्य था. पुराणों के अनुसार सूरदास जन्म से ही अंधे थे इसलिए उनके परिवार ने उनका त्याग कर दिया था.  उन्होंने महज छह साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया था. जन्म से अंधे होने के बावजूद भी उन्होंने अपनी कविता में प्रकृति और दृश्य जगत की अन्य वस्तुओं का बहुत ही सूक्ष्म और अनुभवपूर्ण चित्रण किया है. 


18 साल की उम्र में सूरदास गऊघाट पर ही उनकी मुलाकात महान संत श्री वल्लभाचार्य से हुई और उन्होंने उनसे गुरु दीक्षा ली. माना जाता है कि वह अपने गुरु से महज दस दिन छोटे थे. वल्लभाचार्य ने ही उन्हें ‘भागवत लीला’ का गुणगान करने की सलाह दी. इसके बाद से ही सूरदास ने श्रीकृष्ण का गुणगान शुरू कर दिया.


सूरदास ने क्यों मांगा कृष्ण से अंधे होने का वरदान?


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार सूरदास जी श्रीकृष्ण भक्ति में डूबे कहीं जा रहे थे तभी रास्ते में वे एक कुंआ पड़ा. दिखाई ना देने की वजह से सूरदास कुएं में जा गिरे. भक्त को मुश्किल में देखकर भगवान कृष्ण ने खुद प्रकट होकर उनकी जान बचाई और उन्हें दृष्टि दे दी. उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने सूरदास से कोई वरदान मांगने को कहा. सूरदास ने भगवान से उन्हें फिर से दृष्टिहीन कर देने का वरदाना मांगा. सूरदास जी ने कहा ​कि वे अपने प्रभु के अतिरिक्त किसी और को नहीं देखना चाहते. इस घटना से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सूरदास जी भगवान श्रीकृष्ण के कितने बड़े भक्त थे.


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