शिव तांडव स्तोत्र के कारण रावण की बची थी जान, भगवान शिव से उलझना पड़ गया था भारी
तांडव स्तोत्र जिसका पूरा नाम शिव तांडव स्तोत्र है. कहते हैं कि भगवान शिव से अपनी जान बचाने के लिए रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना की थी. आइए जानते हैं शिव तांडव स्तोत्र के बारे में.
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Shiv Tandav Stotram: शिव तांडव स्तोत्र की रचना रावण ने की थी. रावण लंकापति था और असुरों का राजा था. लेकिन इसके साथ ही उसे प्रकांड विद्वान भी कहा गया है. कहते हैं रावण संस्कृत का ज्ञाता था. शिव तांडव स्तोत्र संस्कृत भाषा में है. शिव तांडव स्तोत्र के बारे में कहा जाता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से कई प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और भगवान शिव का आर्शीवाद प्राप्त होता है.
शिव तांडव स्तोत्र से जुड़ी पौराणिक कथा रावण को आखिर शिव तांडव स्तोत्र की रचना क्यों करनी पड़ी? इस प्रश्न का उत्तर इस पौराणिक कथा में छिपा है. एक बार रावण अपने पुष्पक विमान पर सवार होकर भ्रमण पर निकला. पुष्पक विमान पर सवार होकर रावण का अभिमान सातवें आसमान पर पहुंच जाता था. क्योंकि इस विमान को उसने भगवान कुबेर से छीना था. जब रावण को अधिक अहंकार होता तो वह पुष्पक विमान पर सवार होकर भ्रमण पर निकलता था. पुष्पक विमान मन की गति से चलने वाला विमान था.
कैलाश पर्वत पर पुष्पक विमान की गति धीमी पड़ गई रावण एक बार पुष्पक विमान पर सावर होकर भ्रमण कर रहा था तो कैलाश पर पर्वत के पास पहुंच कर उसके विमान की गति अचानक धीमी पड़ गई. ऐसा होता देख रावण अचरज में पड़ गया, रावण की कुछ भी समझ में नहीं आया कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है. उसने इधर-उधर देखना प्रारंभ कर दिया तो उसे कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की सवारी नंदी पर उसकी नजर पड़ी. तब नंदी ने उसे बताया कि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव निवास करते हैं. यहां पर कोई भी अज्ञात वस्तु बिना शिवजी की इच्छा से पार नहीं जा सकती है. इस पर रावण को गुस्सा आ गया. उसे अपनी शक्ति पर बहुत अहंकार था. इतना सुनने के बाद रावण ने कैलाश पर्वत को ही उठाने की चेष्टा प्रारंभ कर दी. ऐसा करने से कैलाश पर्वत में कंपन शुरू हो गई. इससे ध्यान में लीन भगवान शिव की आंखे खुल गईं. उन्हें पूरी बात समझ में आ गई. रावण का अहंकार चूर करने के लिए भगवान शिव ने अपने पैर से कैलाश पर्वत को दबा दिया जिससे कैलाश पर्वत नीचे जाने लगा, इस प्रक्रिया में रावण के दोनों हाथ पर्वत के नीचे दब गए.
रावण जान बचाने के लिए चिल्लाने लगा रावण ने अपने हाथों को निकालने के लिए बहुत प्रयास किए, लेकिन सफलता नहीं मिली. उसे लगने लगा कि उसके प्राण संकट में हैं. रावण प्राण बचाने के लिए चिल्लाने लगा, उसे अपनी गलती का अहसास हो गया और वह भगवान शिव से क्षमा मांगने लगा. कहते है कि भगवान शिव से रावण कई वर्षों तक क्षमा मांगी लेकिन शिव जी ने उसे माफ नहीं किया तब उसने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्तोत्र की रचना की. शिव तांडव स्तोत्र को सुनकर शिव जी प्रसन्न हुए और उसे मुक्त कर दिया. इस प्रकार से रावण की जान बची.
शिव तांडव स्तोत्र का महत्व ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से कालसर्प और पितृदोष का प्रभाव कम होता है. कालसर्प दोष और पितृ दोष के बारे में कहा जाता है कि जिस व्यक्ति की जन्म कुंडली में ये दोष मौजूद होते हैं कि उन्हें छोटे छोटे कार्यों में भी सफलता पाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है. ऐसे लोगों की जमा पूंजी नष्ट हो जाती है. आर्थिक परेशानियां सदैव ही बनी रहती है. जॉब, करियर और शिक्षा में बाधाएं आती हैं और दांपत्य जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कब करें शिव तांडव स्तोत्र का पाठ प्रदोष व्रत में करना अच्छा माना गया है. इस पाठ को गाकर पढ़ना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि गाकर पढ़ने से इसका लाभ बढ़ जाता है. पंचांग के अनुसार आने वाली 26 जनवरी को प्रदोष व्रत है. यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है.
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