वास्तु शास्त्र के मुताबिक घर के मध्य भाग को ब्रह्म स्थान माना गया है. पुरानी जमाने में घरों में ब्रह्म स्थान पर खुला आंगन होता था. मान्यता है कि खुला हुआ ब्रह्म स्थान घर के अन्य वास्तुदोषों के गलत प्रभाव को कम करता है. मौजूदा दौर में खुले मकानों का चलन कम होता जा रहा है. अगर आपके घर में भी खुला आंगन नहीं है तो घर का खुला क्षेत्र उत्तर या पूर्व की तरफ इस तरह रखें जिससे सूर्य का प्रकाश एवं हवा मकान में ज्यादा से ज्यादा आ सके.
वास्तुशास्त्र में वास्तुपुरुष की नाभि और उसके आस-पास का स्थान ब्रह्म स्थान होता है. हमारे शहीर में जिस तरह पेट से पूरी बॉडी का नियंत्रण होता है. ब्रह्म स्थान से भी ठीक इसी तरह पूरे घर को स्वच्छ वायु, स्वच्छ प्रकाश एवं ऊर्जा की प्राप्ति होती है.
इन बातों का रखें ध्यान
- ब्रह्म स्थान को स्वच्छ रखना चाहिए. इसमें गड्ढा, पानी व गंदगी नही होनी चाहिए.
- घर के मध्य का स्थान थोड़ा ऊंचा होना चाहिए. मकान का मध्य स्थान कभी नीचे धंसा हुआ नहीं होना चाहिए.
- ब्रह्म स्थान को जहां तक संभव हो खाली रखना चाहिए.
- ब्रह्म स्थान में सीढ़ी, वीम, खंभा, भूमिगत पानी की टंकी, बोरिंग, सेप्टिक टैंक, शौचालय इनका निर्माण नहीं किया जाना चाहिए।
- ब्रह्म स्थान में आग से जुड़ा कोई कार्य नहीं करना चाहिए.
- ब्रह्म स्थान अध्यात्म और दर्शन से महत्व रखता है. यहां भजन, कीर्तन, रामायण और गीता का पाठ होता रहना चाहिए.
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