Vastu Shastra: परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का संबंध घर से होता है. घर पर किसी तरह की नकारात्मकता होने से जीवन में भी परेशानियां शुरू हो जाती है. इसलिए भवन निर्माण के लिए भूमि खरीदते समय या भूमि का चयन करते समय वास्तु नियमों का विशेष ध्यान रखना चाहिए. वास्तु ज्योतिष से जानिए भवन निर्माण के लिए कैसी होनी चाहिए भूमि के आकार, प्रकार और लक्षण.
आकृति (Shape)- यदि भूमि की आकृति त्रिभुजाकार, विषमबाहु अथवा का कार्य अण्डाकार हो या सर्पिला आकर हो. तो ऐसी भूमि किसी भी प्रकार के भवन निर्माण के लिए हानिकारक होती है. लेकिन इसके विपरीत वर्गाकार, आयताकार या ध्वजाकर में हो तो वह शुभ मानी जाती है. जिस भूमि का आकार देखने में ही बेढंगा सा प्रतीत हो, वह भूमि नुकसान करती हुई ही देखी गई है.
ऐसी भूमि पर धनहानि, वंशहानि, विवाद की परिस्थितियां बनती रहती हैं, किसी न किसी को रोग लगा रहता है और अस्पताल में धन व्यय होता रहता है. ऐसी भूमि में जितना संभव हो सके वास्तु के नियमों के अनुसार सुधार करना चाहिए तथा उनके बिगड़े आकर को वर्गाकार या आयताकार में ढालने का प्रयास करना चाहिए.
लक्षण (characteristics) - जिस भूमि पर बिजली गिरी हो, पहले भेड़ बकरियों का बाड़ा रहा हो या ऐसे पशु जिनका पालन मांस या अण्डे आदि के उद्देश्य से किया जा रहा हो, ऐसी भूमि पर मकान बनाने से बचना चाहिए. जिस भूमि पर बिल्लियां लड़ती हो, गीदड़ आदि रोते हों, कौवे अधिक बैठते हों या उल्लू अथवा कौवा के पंख गिरे हुए मिलते हों, ऐसी भूमि पर मकान आदि नहीं बनाने चाहिए. जिस भूमि में जंगली जानवर रात में आते रहते हो या आसपास गहरे खड्डे हो तो उसे पर भी मकान नहीं बनना चाहिए.
जिस भूमि में उपजाऊपन ना हो वह भूमि भी शुभ नहीं होती है. भूमि में दरारें पड़ी हो या चूहों के बिल अधिक हो. वहां पर भी भवन निर्माण नहीं करना चाहिए. लेकिन जहां हरी घास उगी हो आसपास फलदार पौधे हो तथा जमीन पर दूर्वा और कुश की घास होगी हुई हो उसे भूमि पर मकान बनाना चाहिए.
उपाय (Upay)- वैसे तो अशुभ भूमि पर मकान आदि निर्माण नहीं करना चाहिए और ना ही उस भूमि को खरीदना चाहिए, क्योंकि उस भूमि को खरीदने से ही धन हानि शुरू हो जाएगी. ना तो उस भूमि पर बरकत होगी और ना आसानी से कार्य शुरू कर पाएंगे. धन व्यर्थ जाएगा. यदि मजबूरन इस प्रकार की भूमि खरीदनी ही पड़े और मकान आदि बनाना ही पड़े तो उसके आसपास के माहौल को जितना हो सके पेड़ पौधे, फूल, दूर्वा आदि लगाकर शुभ बनाने का प्रयास करना चाहिए. खड्डे आदि बंद कर देने चाहिए. यथासंभव भूमि के बिगड़े हुए आकार को वर्गाकार या आयताकार में लाने का प्रयास करना चाहिए तथा मकान का निर्माण कभी भी 6 कोणों के 8 कोणों के आकार में ना करें.
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