Vastu Tips: वास्तु शास्त्र में क्या है दिशाओं का महत्व, नहीं जानते तो यहां जरूर करें क्लिक
Vastu Tips: वास्तु शास्त्र में दिशाओं के बारे में बहुत ही विस्तार से बताया गया है. घर, भवन, मकान, दुकान और ऑफिस आदि के निमार्ण से पहले इनका ध्यान करना चाहिए, ताकि नुकसान से बच सकें.
Vastu Tips: भवन, मकान, घर, दुकान, ऑफिस आदि के निर्माण से पहले दिशा आदि का विशेष अध्यन करना चाहिए. वास्तु शास्त्र में दिशाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है. घर की पॉजिटिव और नेगेटिव एनर्जी के पीछे दिशाओं का अहम रोल होता है. इसलिए निर्माण से पहले जानकार व्यक्ति दिशाओं पर ध्यान देते हैं. वास्तु शास्त्र में दिशाओं के बारे में क्या बताया गया है, आइए जानते और समझते हैं-
आग्नेय अथवा अग्निकोण - वास्तु शास्त्र में पूर्व और दक्षिण दिशा के बीच के भाग को आग्नेयकोण अथवा अग्नि कोण कहते हैं. इस दिशा में इन्द्रदेव तथा दंडाधिकारी यम की शक्ति का मिलन कहा जाता है. यह एक शक्तिशाली और ऊर्जा वाली दिशा है इस दिशा में जलनशील चीज रखी जानी चाहिए जैसे कि चूल्हा रखना, हमाम रखना या आग सेकने के लिए स्थान बनाना इस दिशा में उत्तम रहता है.
दक्षिण दिशा - इस दिशा के स्वामी यह है और इनका कृष्ण वर्ण है यह न्याय करते हैं तथा इन्हें न्यायाधिपति भी कहा जाता है दंड इनका अस्त्र है तथा यह सूर्य देव के पुत्र होने के कारण धन-धान्य की समृद्धि देने वाले हैं. दक्षिण दिशा को पितरों की दिशा भी कहा जाता है इस दिशा में भारी चीज रखी जाना सही माना जाता है तथा घर के दक्षिण दिशा का स्थान यदि ऊंचा हो तो वह लाभ देने वाला होता है. पितरों की तस्वीर दक्षिण दिशा में लगाई जानी चाहिए और जीवित व्यक्ति को कभी दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके भी नहीं सोना चाहिए.
नैऋत्य कोण - दक्षिण और पश्चिम दिशा के बीच वाला कौन नैऋत्य कोण कहा जाता है. यह भाग पश्चिम दिशा के देवता वरुण तथा दक्षिण के देवता यह की शक्ति से यह भाग बना है यह शीतल स्वभाव तथा क्रूर स्वभाव का मिश्रण है. इस दिशा में अस्त्र-शस्त्र रखना उचित रहता है क्योंकि यह संहारक प्रकृति वाला कोण है, इसलिए इस दिशा में पे स्थान ऊंचा हो तो अच्छा रहता है जो कि शत्रु के भय से बचाव करता है. इस दिशा में नीले रंग अच्छा कृष्ण वर्णन के शीशे या पर्दे लगाना शुभ रहता है.
पश्चिम - यह दिशा वरुण देव की दिशा है और मगरमच्छ इनका वाहन है यह शीतल प्रकृति की दिशा है और स्वभाव कुछ लचीला है अस्त होते हुए सूर्य की किरणें दिशा की तरफ से पड़ती हैं. इसलिए इस दिशा में खिड़की या दरवाजा होना कुछ अच्छा नहीं माना जाता है. स्वास्थ्य की दृष्टि से अस्त होते हुए सूर्य की किरणें अच्छी नहीं मानी जाती है. यह भाग भी ऊंचा रखना चाहिए. इस भाग में पानी का स्रोत लगाया जा सकता है लेकिन शर्त है कि पानी का स्रोत सीधे पश्चिम की दिशा में ही हो और पानी पीते समय मुंह पश्चिम दिशा की तरफ ना हो. जितना संभव हो सके इस दिशा में खिड़कियां काम ही रखनी चाहिए मेरी पर्दे और कांच लगते हो तो सफेद रंग के लगाने चाहिए.
वायव्य कोण - वायुव्य कौन पश्चिम तथा उत्तर दिशा के बीच का कौन है उत्तर दिशा के मलिक कुबेर तथा पश्चिम दिशा के मालिक वरुण की शक्ति इस को में समाहित रहती है और इस दिशा में वायु का आधिपत्य है. इस दिशा का स्थान भी ऊंचा रखना चाहिए यदि इस दिशा की तरफ का स्थान नीचे हुआ तो इसका अशुभ प्रभाव बढ़ेगा और यदि इस दिशा में अशुभ प्रभाव बढ़ता है तो शत्रु भी मित्रों जैसा व्यवहार करने लग जाते हैं. इस दिशा में हरे रंग के कांच पर्दे लगाए जाने चाहिए.
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