Vastu Shastra: भवन निर्माण के लिए जरूरी है भूमि का वर्ण और पृष्ठतल, दोष होने पर करें ये काम
Vastu Tips: वास्तु शास्त्र में भवन निर्माण के लिए वर्ण और भूमि के पृष्ठतल को जरूरी माना जाता है. इनमें कुछ दोष होने पर वास्तु शास्त्र के अनुसार वास्तु पूजन और शत चंडी पाठ करवाना चाहिए.
Vastu Shastra: भूमि का वर्ण और भूमि का पृष्ठतल भवन निर्माण के लिए एक आवश्यक तत्व है. इसका विचार करके ही भूमि पर भवन निर्माण करना चाहिए. यदि भूमि के वर्ण और पृष्ठतल में किसी प्रकार का कोई दोष नजर आए तो उसे यथासंभव सुधार कर ही कार्य शुरू करना चाहिए.
भूमि का वर्ण- भूमि को चार वर्णों में बांटा गया है जिसके आधार पर भूमि के लाभ हानि का विचार किया जाता है. इसमें भूमि का रंग सुगंध आदि से लाभ हानि विचार किया जाता है.
- ब्राह्मणवर्ण भूमि- जिस भूमि की मिट्टी श्वेत सा रंग लिए, अच्छी सुगंध वाली होती है तथा आसपास अच्छे फूल पौधे हो, फलदार वृक्ष हों,भूमि की मिट्टी से यज्ञ की भस्म जैसी सुगंध और स्वाद आए तो यह ब्राह्मण वर्ण की भूमि कही जाती है. इस भूमि पर सात्विक प्रभाव अधिक रहता है तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है. शिक्षा संबंधित संस्थाओं के लिए यह भूमि बहुत उत्तम कही गई है.
- क्षत्रियवर्ण भूमि- इस प्रकार की भूमि की मिट्टी कुछ लाल रंग लिए रहती है तथा रक्त जैसी गंध आती है और कसैला स्वाद होता है, आसपास लंबे मजबूत वृक्ष होते हैं. ऐसी भूमि पर कार्य करने से आत्मबाल अधिक रहता है, लेकिन कई बार आत्म बल अतिरिक्त बढ़ जाता है और आपराधिक वृद्धि भी पैदा हो जाती है. अस्त्र-शास्त्र बनाने के कारखाने, खेलकूद की संस्थाएं तथा जूडो कराटे आदि से संबंधित कार्यों के लिए यह भूमि उचित रहती है।
- वैश्यवर्ण भूमि - इस प्रकार की भूमि कुछ पीला रंग लिए तथा शहर जैसे गन्ध वाली और खट्टे-मीठे स्वाद वाली होती है. राजनीतिक कार्यों के लिए इस प्रकार की भूमि अच्छी रहती है लेकिन यदि वित्त संबंधित कार्य ऐसी भूमि पर किए जाएं तो वह हानिप्रद हो सकते हैं.
- शूद्रवर्ण भूमि- ऐसी भूमि की मिट्टी कालिया वेरिसिलिटी रंग वाली तथा शराब जैसी गन्ध और तीखे स्वाद वाली होती है. ऐसी भूमि पर कार्य करने से बुद्धि में नकारात्मक विचार अधिक रहते हैं तथा धन भी बहुत धीमी गति से आता है. शराब के कारखाने या शराब बेचने के लिए अथवा नशीले पदार्थों के कारोबार के लिए ऐसी भूमि अच्छी होती है.
भूमि पृष्ठतल - भूमि का पृष्ठ ताल किस दिशा से ऊंचा और किस दिशा से निशा है तथा किस प्रकार के आकार प्रकार का है इन सब को देखते हुए भूमि के पृष्ठतल को चार भागों में बांटा गया है
- गजपृष्ठा भूमि- जो भूमि नृत्य तथा वायव्य को में ऊंची हो उसे गज पृष्ठभूमि कहते हैं. इस भूमि पर भवन निर्माण करने से धन लाभ होता है तथा वंश की वृद्धि होती है और शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति भी होती है. परिवार में ज्ञान विचार करने वाली संतान पैदा होती है.
- कूर्मपृष्ठा भूमि- क्यों भूमि बीच में से ऊंची हो तथा चारों दिशाओं में नीची हो अर्थात कछुए की पीठ की तरह हो उसे कूर्मपृष्ठा भूमि कहते हैं. यह भूमि समाज में प्रतिष्ठा की वृद्धि करती है तथा ऐसी भूमि पर एडमिनिस्ट्रेशन एग्जाम की तैयारी करने वाले संस्थान बनाने से या वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र आदि बनाने से लाभ होता है.
- नागपृष्ठा भूमि- यह भूमि पूर्व और अग्नि कोण तथा ईशान कोण में ऊंची होती है. यह पश्चिम की ओर नीची होती है, यह दैत्यपृष्ठा भूमि कहलाती है. इस भूमि पर लड़ाई झगड़ा और बदनामी, अकाल मृत्यु या पुत्र हानि जैसी बुरी घटनाएं होती है.
- नागपृष्ठा भूमि- यह भूमि पूर्व से पश्चिम दिशा की तरफ लंबाई लिए और पश्चिम की तरफ झुकी हुई तथा उत्तर दिशा में ऊंचाई लिए होती है. इस प्रकार की भूमि में शत्रु द्वारा हानि करने का भय होता है तथा बड़े स्तर पर धन की चोरी की संभावना रहती है.
जब भी इस प्रकार का भूमि दोष मिले तो उसमें वास्तु पूजन आदि कराकर शत चंडी पाठ करवाना चाहिए.
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