Ved Vaani, Vedas Importance of Life: वेद हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण और एकमात्र धर्मग्रंथ है. इसके चार भाग हैं, जिनमें ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद है. ऋग्वेद को ज्ञान का भंडार, यजुर्वेद को कर्म का द्योतक, सामवेद को संगीत विद्या का धनी और अथर्ववेद को विज्ञान का पितामह कहा गया है. हम अपनी दिनचर्या या जीवनकाल में कई तरह के ज्ञान के अर्जित करते हैं. लेकिन ईश्वरीय ज्ञान वही कहलाता है जो ज्ञान सृष्टि के आदिकाल में दिया जाता है.
जीवन में वेदों का महत्व- साधारण और सरल भाषा में कहें तो जिस प्रकार दही में माखन, मनुष्यों में ब्राह्मण, ओषधियों में अमृत, नदियों में गंगा और पशुओं में गौ को श्रेष्ठ माना गया है. ठीक इसी तरह से समस्त ग्रंथों में वेद सर्वश्रेष्ठ और महत्वपूर्ण है. यदि संक्षेप में कहा जाए तो, वेद अमूल्य रत्नों के भण्डार हैं.
वेद के दूसरे भाग यजुर्वेद के 32वें अध्याय में कहा है कि 'यथेमांवाचं कल्याणी मावदानि जनेभ्य'. यानी जिस तरह सूर्य की प्रकाश सबके लिए है, वायु सबके लिए है. ठीक उसी प्रकार वेद का ज्ञान भी सबके लिए है. इसलिए सभी व्यक्ति को वेदों का ज्ञान अवश्य ग्रहण करना चाहिए. जानते हैं वेदों से जुड़ी ऐसी बातें जो जीवन को सफल और सरल बनाने में बहुत काम आती हैं.
।। सं गच्छध्वम् सं वदध्वम्।। (ऋग्वेद 10.181.2)
अर्थ: साथ चलें और मिलकर बोलें. उसी सनातन के मार्ग का पालन करें जिस पर हमारे पूर्वज चले हैं.
श्लोक : ।। मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्, मा स्वसारमुत स्वसा। सम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया।।2।। (अथर्ववेद 3.30.3)
अर्थ: भाई का भाई संग द्वेष न हो, बहन, बहन से द्वेष न करें, समान गति से एक-दूसरे का आदर-सम्मान करते हुए एकसाथ मिल-जुलकर कर्मों को करने वाले होकर रहे और एकमत से हर कार्य करने वाले होकर भद्रभाव से परिपूर्ण होकर संभाषण करें. उक्त तरह की भावना रखने से कभी गृह क्लेश नहीं होता है और संयुक्त परिवार में रहकर व्यक्ति शांतिमय जीवन जी कर सर्वांगिण उन्नति करता है.
श्लोक : ।।अलसस्य कुतः विद्या अविद्यस्य कुतः धनम्। अधनस्य कुतः मित्रम् अमित्रस्य कुतः सुखम्।।
अर्थ: आलसी को विद्या कहां, अनपढ़ या मूर्ख को धन कहां, निर्धन को मित्र कहां और अमित्र को सुख कहां.
श्लोक : ।।यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः। एवा मे प्राण मा विभेः।।1।।- अथर्ववेद
अर्थ: व्यक्ति को कभी किसी भी प्रकार का भय नहीं पालना चाहिए. भय से जहां शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं वहीं मानसिक रोग भी जन्म लेते हैं. इसलिए डरे हुए व्यक्ति का कभी किसी भी प्रकार से विकास नहीं होता. संयम के साथ निर्भिकता होना जरूरी है. अगर भय रखना है तो सिर्फ ईश्वर का रखें.
श्लोक : ।। येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः । ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।।
अर्थ: जिस मनुष्य ने किसी भी प्रकार से विद्या का अध्ययन नहीं किया, न ही उसने व्रत और तप किए, थोड़ा बहुत अन्न-वस्त्र-धन या विद्या दान नहीं दिया, न उसके पास कोई ज्ञान न हो, न शील हो, न गुण हो और न ही धर्म हो. तो ऐसे मनुष्य इस धरती पर भार होते हैं. मनुष्य रूप में होते हुए भी वे पशु के समान जीवन व्यतीत करते हैं.
ये भी पढ़ें: Ved Vaani: मृत्यु के बाद इन विशेष कारणों से होता है आत्मा का पुनर्जन्म, जानें क्या होती है वजह
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.