Vidur Niti: महात्मा विदुर हस्तिनापुर के महामंत्री और महाराजा धृतराष्ट्र के सलाहकार थे. वे महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक थे. महाराजा धृतराष्ट्र और महात्मा विदुर के बीच हुए जीवनोपयोगी संवाद का संकलन ही विदुर नीति है. वे विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. विदुर हमेशा सत्यवादी रहे. वे हमेशा सत्य मार्ग पर चलते और दूसरों को भी चलने के लिए प्रेरित करते रहे.


विदुर विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कभी धर्म का मार्ग नहीं छोड़ा. उनके इन्हीं सब गुणों के कारण उनके विरोधी भी उनके सामने नतमस्तक हो जाते थे. विदुर नीति के अनुसार कर्ज व्यक्ति के आत्मविश्वास को नष्ट कर देता है.


कर्ज इंसान का आत्मविश्वास कर देता है नष्ट


विदुर नीति के अनुसार, कलियुग में वही इंसान सुखी होता है जो किसी का कर्जदार नहीं होता है. जो व्यक्ति किसी से कर्ज लिए हुए होता है. वह हमेशा दुखी और चिंतित रहता है. जब तक वह कर्जदार रहता है. तब तक वह तानव में रहता है. उसके दिन का चैन और रात की नींद उड़ जाती है. कर्ज लेने वाले व्यक्ति का आत्मविश्वास ख़त्म हो जाता है. वह कभी प्रसन्न नहीं रहता है. घर में कलह और अशांति बनी रहती है. 


विदुर नीति के अनुसार इंसान जब कर्ज लेता है, तो उसे बहुत ख़ुशी होती है लेकिन जब उसे लौटाने का समय आता है, तो वह असहज और असहाय महसूस करता है. ऐसे व्यक्ति को कर्ज देने वाले की खरी खोटी भी सुननी पड़ती है. विदुर जी कहते हैं कि कर्ज एक रोग है. इसलिए इंसान को कर्ज रूपी रोग से सदैव अपने आपको सुरक्षित रखना चाहिए.


आय से अधिक व्यय करने वाला नहीं रहता है सुखी और खुशहाल


विदुर जी कहते हैं कि जो व्यक्ति आय से अधिक खर्च करता है, उसे नष्ट होने से कोई भी नहीं बचा सकता. जो व्यक्ति व्यय करते समय अपने आय का ध्यान नहीं रखते हैं. वे आगे चलकर दुःख ही भोगते हैं. विदुर जी कहते हैं कि आय श्रम से उत्पन होता है. इस लिए इसे काफी सहेज कर रखना चाहिए. जो लोग ऐसा नहीं करते हैं. वे कभी सुखी और खुशहाल नहीं रहते हैं.




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