Vidur Niti: महात्मा विदुर महाभारत काल के बुद्धिमान और कुशल व्यक्तियों में से एक थे. उन्होंने महाभारत काल में व्यक्ति को सफलता के कई गुणों से परिचित कराया था. ये गुण मौजूदा समय में भी लाखों युवाओं का मार्गदर्शन कर रहीं हैं. जिनके माध्यम से लोग जीवन में सफलताएं प्राप्त कर रहें हैं.


यह विदुर नीति हस्तिनापुर के महामंत्री विदुर और महाराजा धृतराष्ट्र के बीच हुए महत्वपूर्ण संवाद एवं वार्तालाप का एक अंश है. विदुर नीति में इस बात का उल्लेख किया गया है कि व्यक्ति को अपने जीवन में सफलता पाने के लिए किस प्रकार का व्यवहार और कैसे चरित्र का पालन करना चाहिए. महात्मा विदुर यह भी कहते हैं कि राज्य की प्रगति के लिए राजा या नायक को अपने जीवन में कैसा व्यवहार बिल्कुल नहीं अपनाना चाहिए. ये है तो उसका तुरंत त्याग कर देना चाहिए.


राजा और नायक को करना चाहिए इन गुणों का पालन


विदुर नीति में इस श्लोक के माध्यम से बताया गया है कि रजा में किस तरह का गुण होना चाहिए जो राज्य को तरक्की दिलाये.


श्लोक:


द्वविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो बिलशयानिवं


राजानं चाविरोद्धारं ब्राह्मणं चाप्रवासिनम् ।।


महात्मा विदुर ने इस श्लोक के माध्यम से बताया है कि जिस प्रकार से बिल में रहने वाले चूहे या मेढ़क को सांप खा लेता है. ठीक उसी प्रकार से शत्रुओं के प्रति विरोध न करने वाले राजा और परदेश न जाने वाले व्यक्ति को समय खा लेता है. विदुर नीति के अनुसार, हर समय बिल में रहने वाला जानवर अपनी आत्म रक्षा के गुण नहीं सीख पाता है और जो राजा शत्रुओं की सेना का विरोध नहीं करता है. उस पर विरोधी सेना हावी होने लगती है. 


विदुर जी कहते हैं कि नायक को इतना योग्य होना चाहिए कि वह हर परिस्थिति में महत्वपूर्ण निर्णय ले सके. विदुर जी कहते हैं कि नायक के एक गलत फैसले से सारी सेना मारी जा सकती है. ऐसा नायक राज्य के लिए उचित नहीं होता. 


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