Vidur Niti: महाभारत काल में महाराजा धृतराष्ट्र के महामंत्री महात्मा विदुर थे. वे बहुत ही न्यायप्रिय, बुद्धिमान और अनुशासनप्रिय थे. ये महाभारत में अपनी स्पष्टवादिता के कारण बहुत ही चर्चित थे. द्वापर युग में हुई कौरवों और पांडवों के युद्ध में इनके विचार तत्कालीन समय में तो प्रासंगिक थे ही. मौजूदा समय में भी ये उससे ज्यादा महत्वपूर्ण बन गए हैं. इनकी नीतियां सदैव व्यक्ति को सही पथ पर चलने के लिए प्रेरित तो करती ही हैं. साथ ही ये उन्हें समाज में मान-सम्मान भी दिलाती है. विदुर नीति के अनुसार, व्यक्तियों के अंदर कुछ आदतें ऐसी होती है, जिनकी वजह से व्यक्ति को घोर पाप का भागीदार बनना पड़ता है. इस लिए व्यक्ति को इन आदतों के बारे में जानना बहुत जरूरी होता है. व्यक्ति इन आदतों को छोड़कर सम्मानित और सुखमय जीवन जी सकता है तथा मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त कर सकता है.


विदुर नीति


महात्मा विदुर के अनुसार, जो लोग दूसरे का धन अन्याय पूर्वक हड़प लेते हैं. तो उस समय उन्हें ऐसा एहसास होता है कि उनके पास बहुत धन हो गया है और वे तरक्की कर रहें हैं लेकिन भविष्य में उन्हें उससे कई गुना ज्यादा हानि उठानी पड़ती है. समाज में उनका मान –सम्मान गिर जाता है. लोग उन्हें बुरी नजर से देखते हैं. ऐसे में लोगों को कभी भी दूसरे के धन पर नजर नहीं रखनी चाहिए अर्थात किसी दूसरे के धन को अपना धन नहीं समझना चाहिए.


जो लोग गलत संगत में पड़ जाते हैं या फिर धर्म से जुड़ी चीजों को शक की नजर से देखते हैं. वे निश्चित रूप से अधर्मी होते हैं. ऐसे लोग नरकगामी होते हैं और घोर पाप के भागीदार बनते हैं. यदि किसी व्यक्ति में काम, क्रोध और लोभ ये तीनों अवगुण होते हैं तो इससे उसके व्यक्तित्व और आत्मा दोनों का नाश हो सकता है.


 


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