Vidur Niti: महाभारत काल में महात्मा विदुर को धर्म और राजनीति का महाज्ञानी माना जाता है.  ये कौरवों के महामंत्री थे. इनके इन्हीं गुणों के कारण महाराजा धृतराष्ट्र ने इन्हें अपना सलाहकार बनाया था. महाराजा धृतराष्ट्र करीब –करीब हर गंभीर मामलों पर महात्मा विदुर से सलाह लिया करते थे. महात्मा विदुर और महाराजा धृतराष्ट्र के बीच हुए संवादों का संग्रह ही विदुर नीति कहलाया. विदुर नीति में राज्य से संबंधित कई महत्वपूर्ण बातों का वर्णन किया गया है. उनकी ये बाते धर्म परक होने के साथ-साथ राज्य के लिए भी बहुत उपयोगी रहीं हैं.


विदुर नीति की ये बातें आज भी उतनी प्रासंगिक है, जितनी कि तत्कालीन समय में, क्योंकि विदुर की नीतियां आज भी जीवन को ठीक प्रकार से जीने में और राज्यों के उत्थान और प्रजा की भलाई में सहायक सिद्ध होती रही हैं,  महात्मा विदुर ने बताया है कि प्रजा की भलाई के लिए राज्य को चलाने में किन चीजों का संतुलन आवश्यक है. इनके असंतुलित होने से राज्य कर्ज में डूब जाता है और प्रजा  में विद्रोह की भावना पनपने लगती है. विदुर नीति में कहा गया है कि:-


आर्थिक संतुलन  


श्लोक: यः प्रमाणं न जानाति स्थानेवृद्धौ तथा क्षये। कोशे जनपदे दण्डे न स राज्ये वतिष्ठते।।


विदुर नीति के अनुसार, किसी भी राज्य की स्थिरता के लिए आर्थिक और धर्म के बीच उचित संतुलन और तालमेल का होना जरूरी है. आज भी बिना आर्थिक मजबूती के राज्य का चलना बहुत मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है. उस वित्तीय या आर्थिक संतुलन के साथ राज्य को जन उपयोगी कार्यों में भी धन खर्च करना पड़ता है.  राजकोष और उससे जन कल्याणकारी निवेश से ही राज्य चल सकता है. दोनों के बीच संतुलन जरूरी है अन्यथा राज्य कर्ज में डूब जाएगा.


धर्म की महत्ता


श्लोक: यस्त्वेतानि प्रमाणानि यथोक्तन्यनुपश्यति। युक्तो धर्मार्थयोर्ज्ञाने स राज्यमधिगच्छति।।


महात्मा विदुर धर्म में वे राजा से एक न्यायोचित व्यवहार की मांग करते हैं. धारयति इति धर्मः यानी जो राजा के चिंतन में मनुष्य की आत्मा की जरूरतों और अर्थ केन्द्र में होना चाहिए. वही अच्छा शासक हो सकता है.




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