Vidur Niti For Success: द्वापर युग में महाभारत (Mahabharat) का युद्ध हुआ था. इसी समय महात्मा विदुर (Vidur Ji) ने महाराज धृतराष्ट्र को नीतिपरक उपदेश देकर उनके मन को सांत्वना प्रदान करने की कोशिश की थी. उन्होंने मानव जीवन के तमाम ऐसे रहस्यों के बारे में बताया जिससे महाराज धृतराष्ट्र (Maharaj Dhritarashtra) के मन में उठने वाले सवालों का जवाब उन्हें मिला. महाभारत ग्रंथ के उद्योग पर्व में अध्याय 33 से अघ्याय 40 तक जो महाराज धृतराष्ट्र और महात्मा विदुर (Mahatma Vidur) के बीच में वार्तालाप हुआ, उसका वर्णन है. इसी को विदुर नीति (Vidur Niti) के नाम से जाना जाता है.


ऐसा व्यक्ति रहता है सदा परेशान


विदुर नीति में विदुर जी ने कहा है कि-


श्लोक: परं क्षिपति दोषेण वर्तमान: स्वयं तथा। यश्च क्रुध्यत्यनीशान: स च मूढतमो नर: ।।


श्लोक का अर्थ: इस श्लोक का अर्थ यह है कि जो व्यक्ति अपनी गलती को दूसरों की गलती बताकर स्वयं को बुद्धिमान दिखाता है और अक्षम होते हुए भी क्रोधित होता है वह महामूर्ख कहलाता है.


ऐसा नहीं है कि इस जीवन में कोई मनुष्य गलतियां नहीं करता है, लेकिन अगर व्यक्ति अपनी गलती को मानने से इनकार करता है या उसे दूसरे के ऊपर डालने की गलती करता है तो वह बिल्कुल भी गलत है. मनुष्य के अंदर अपनी गलती को स्वीकार करने की क्षमता होनी चाहिए. जो व्यक्ति अपनी गलती को स्वीकार करने की हिम्मत नहीं रखता है. वह उस गलती को कभी सुधार नहीं सकता है. इसीलिए लोगों की नजर में गिर जाता है. उसे सफलता प्राप्त नहीं होती है.


विदुर जी (Vidur Ji) के अनुसार अपनी गलती को मान कर उसे सुधार लेने वाला इंसान श्रेष्ठ होता है. हर जगह उसका सम्मान होता है. वह अपने हर कार्य में सफलता प्राप्त करता है.



 


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.