Vidur Niti: महात्मा विदुर और हस्तिनापुर के महाराजा धृतराष्ट्र के बीच हुए संवाद और वार्तालाप के संग्रह को ही विदुर नीति (Vidur Niti) कहते है. विदुर नीति में बताई गई बातें आज भी मानव जीवन के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि तत्कालीन समय में. महात्मा विदुर ने अपनी नीति में एक श्लोक के माध्यम से बताया है कि बुद्धिमान व्यक्ति वही है जो समग्र रूप से विकसित होते हुए धनवान होता है.

       


श्लोक


आत्मज्ञानं समारम्भस्तितिक्षा धर्मनित्यता। यमार्थान्नापकर्षन्ति  स  वै  पण्डित  उच्यते।।


आशय:  आत्मज्ञान, उद्योग, कष्ट सहने का सामर्थ्य और धर्म में स्थिरता, ये बातें जिसको 'अर्थ' यानी धन से भटकाती नहीं हैं, वही पंडित (बुद्धिमान) कहलाता है. भारतीय दर्शन के मुताबिक, मानव जीवन और उसकी सार्थकता 4 पुरुषार्थों पर आधारित है. ये 4 पुरुषार्थ हैं- अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्ष.


मानव जीवन के 4 पुरुषार्थ



  • अर्थ : जीवन का आधार धन-दौलत एवं संपदा की प्राप्ति

  • धर्म : छोटे-बड़े के साथ अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का निर्वाह

  • काम : उचित रूप से संतानोत्पत्ति के लिए काम-वासना की इच्छापूर्ति यानी भोग

  • मोक्ष: सभी प्रकार की  कामनाओं से मुक्त होकर संसार का त्याग करना


महात्मा विदुर की नीति का यह श्लोक बहुत गूढ़ है. विदुर नीति के अनुसार, अनेक सद्गुणों से युक्त जो व्यक्ति अर्थ से विचलित नहीं होता है. सच्चे मायने में वह बुद्धिमान कहलाता है. उपरोक्त श्लोक में आये पंडित शब्द का अर्थ मौजूदा समय में ब्राह्मण से लेना उचित नहीं होगा क्योंकि तत्कालीन समय में पंडित या ब्राहमण का आशय ज्ञानी / विद्वान से होता था. आज के संदर्भों में इस श्लोक के पंडित का आशय बुद्धिमान या विवेकवान व्यक्ति से करना उचित होगा.


विदुर नीति के अनुसार, अगर आप सांसारिक जीवन में हैं, तो आपको भारतीय दर्शन के 4 पुरुषार्थों का प्रथम लक्ष्य अर्थ अर्थात धन के महत्व को समझना पड़ेगा. यह अर्थ अर्थात धन ही आपको समाज में प्रतिष्ठा दिलाता है. ऐसे में प्रथम लक्ष्य की प्राप्ति को इंकार नहीं किया जा सकता है. महात्मा विदुर जी कहते हैं कि धन जीवन के लिए बहुत जरूरी चीज होती है.  



 


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