Vidur Niti: महाभारत काल के ज्ञानी पुरुषों में एक महात्मा विदुर हस्तिनापुर के महाराजा धृतराष्ट्र के सलाहकार और महामंत्री थे. इन्होंने हमेशा न्याय और धर्म का पक्ष लिया. इसलिए महात्मा विदुर को धर्मराज का अवतार माना जाता है.
हर समय जब भी देश हित और मानव हित में महाराज धृतराष्ट्र को सलाह की जरूरत पड़ी तब-तब महात्मा विदुर ने उन्हें सर्वोत्तम सलाह दी. महाराजा धृतराष्ट्र और महात्मा विदुर के बीच इन्हीं वार्तालापों और संवादों का संकलन ही विदुर नीति है. एक बार धृतराष्ट्र ने जब विदुर से सवाल किया कि व्यक्ति की यानी अपने और पराये की पहचान कब होती है? तो इसके जवाब में महात्मा विदुर ने क्या कहा?ए आइये जानें.
व्यक्ति की पहचान कब होती है?
धृतराष्ट्र के प्रश्न –“अपने और पराये की पहचान कब होती है?” का उत्तर देते हुए महात्मा विदुर ने कहा कि हे राजन व्यक्ति की पहचान उसके अच्छे समय में नहीं होती है. व्यक्ति की असली पहचान तो तब होती है जब संकटों से घिरा होता है. संकटों से घिरे होने पर ही उसकी कुशलता और उसके प्रतिभा की पहचान होती है. ऐसे समय पर ही उसके गुणों का आकलन किया जा सकता है.
संकट के समय जो आपकी मदद के लिए तैयार रहे वही अपना सच्चा हितैषी हो सकता है. स्वार्थी लोग तो अच्छे समय में आपकी चापलूसी कर अपना स्वार्थ सिद्धि करते रहेंगे लेकिन जब संकट का समय आयेगा तो वे सबसे पहले साथ छोड़कर चले जायेंगे.
संकट के समय न खोएं अपना धैर्य
महात्मा विदुर कहते हैं कि संकट के समय व्यक्ति को अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए. अक्सर व्यक्ति जब सकंट से घिरा होता है तो वह धैर्य नहीं रख पाता है. वह परेशान और निराश हो जाता है. ऐसे लोग कभी भी प्रतिभावान और धैर्यवान नहीं हो सकते हैं. इस लिए व्यक्ति को अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए. धैर्य को हर परिस्थिति में बनाये रखना चाहिए. महात्मा विदुर का कहना है कि संकट के समय विपरीत परिस्थितियों से निरंतर संघर्ष करना चाहिए. जो व्यक्ति संकट की घड़ी में अपना आपा नहीं खोते हैं और आत्मविश्वास बनाएं रखते हैं. वे ही असली व्यक्ति होते हैं, वे ही जंग जीतते हैं.
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