Vrishabha Sankranti: सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में गोचर करने को संक्रांति कहा जाता है. पूरे साल में कुल 12 संक्रान्तियां होती हैं और हर एक संक्रांति का अपना अलग महत्व होता है.  हिन्दू धर्म में संक्रांति का समय बहुत पुण्यकारी माना जाता है. इस दिन पितृ तर्पण, दान, धर्म और स्नान आदि का बहुत महत्व होता है. इस समय सूर्य देव अपनी उच्च राशि मेष में हैं और 15 मई को वो वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे. वृषभ राशि में सूर्य के प्रवेश को वृषभ संक्रांति कहा जाता है.



ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को जगत की आत्मा का कारक माना गया है. कुंडली में सूर्य के अनुकूल होने से जीवन में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है. व्यक्ति राजा के समान यश, मान, सम्मान और प्रसिद्धि प्राप्त होती है. इस दिन सूर्य देव को जल देने और उनकी पूजा करने उच्च फलों की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं वृषभ संक्रांति का क्या महत्व है.


वृषभ संक्रांति की पूजा 


वृषभ संक्रांति के दिन व्रत और पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है. माना जाता है कि वृषभ संक्रांति के दिन जो कोई भी पूजा-पाठ और व्रत-दान करता है उसे जीवन में खूब यश और वैभव की प्राप्ति होती है. वृषभ संक्रांति के दिन भगवान शिव के ऋषभ रूद्र स्वरूप और भगवान सूर्य की पूजा किए जाने की परंपरा है. इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य देने से भगवान सूर्यनारायण की कृपा बनी रहती है. इस दिन सूर्य आराधना करने से सूर्य ग्रह से संबंधी दोषों का निवारण होता है.


वृषभ संक्रांति का महत्व 


वृषभ संक्रांति के दौरान सूर्य देवता मेष राशि से निकलकर वृषभ राशि में प्रवेश करते हैं. इस दिन सूर्य देवता 9 दिनों के लिए रोहिणी नक्षत्र में भी आते हैं. इसलिए इन 9 दिनों में बहुत ही तेज गर्मी पड़ती है. सूर्य की परिक्रमा के चलते इन 9 दिनों को नवतपा भी कहा जाता है. यही वजह है कि इस दौरान जल का विशेष महत्व माना जाता है. 


इस संक्राति में  घर के बाहर प्याऊ लगवाना या लोगों को जल पिलाना बहुत पुण्यकारी माना जाता है.  वृषभ संक्रांति के दौरान ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का उच्चारण पूर्वक जाप करना भी बेहद फलदाई होता है.


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