पीपल के पेड़ की मान्यता भारतीय सनातन धर्म में अत्यधिक है. पीपल शनिदेव के दोषों को दूर करने, भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और विवाह बाधा दूर करने में सहायक है.
भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद गीता में स्वयं कहा है, वृक्षों में मैं पीपल हूं. यही कारण है कि कुछ अत्यंत पूजनीय वृक्षों में पीपल का स्थान सर्वोच्च है. पीपल की पूजा न सिर्फ देवताओं को प्रसन्न करने के लिए की जाती है, बल्कि ग्रह-नक्षत्रों के दोषों को शांत करने के लिए भी की जाती है. ग्रहजनित पीड़ाओं को दूर करने में पीपल के समान कोई अन्य वृक्ष नहीं है. यह समस्त दशाओं को अनुकूल बनाने की क्षमता रखता है.
वैज्ञानिक दृष्टि से पीपल चौबीस घंटे आक्सीलन छोड़ने वाला पेड़ है. ऐसा विश्वास है कि पीपल की निरंतर पूजा अर्चना कर परिक्रमा करते हुए जल चढ़ाने से संतान की प्राप्ति होती है. व्यक्ति को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं. इसके साथ ही अदृश्य आत्माएँ तृप्त होकर सहायक हो जाती हैंं. इस पेड़ पर ही पितरों का वास माना गया है. किसी मनोकामना की पूर्ति के लिए भी इसके चारों ओर कच्चा सूत लपेटते हुए परिक्रमा करने की प्रथा है.
ऐसी मान्यता है कि पीपल के वृक्ष के जड़ में लगातार 43 दिन तक जल डालने और दीपक जलाने से विवाह के शीघ्र तय होने के योग बनते हैं. रविवार को तथा निषेध काल में जल नहीं चढ़ाना चाहिए. इस समय नकारात्मक शक्तियों का वास होता है.