Well Worship: कुआं पूजन क्या है, 27 दिनों तक पिता क्यों नहीं देखते हैं संतान का मुंह? जानें वजह
Well Worship Ceremony: हिंदू धर्म में कुआं पूजन की परंपरा बहुत पुरानी है. यह परंपरा श्रीकृष्ण के जन्म से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि कृष्ण के जन्म के ग्यारहवें दिन माता यशोदा ने यह पूजा की थी.
Kuan Pujan Importance: ज्योतिष शास्त्र में पूरे आकाश मंडल को 27 नक्षत्रों बांटा गया है. हर नक्षत्र का मूल स्वभाव अगल होता है जो अलग ही फल देता है. इनमें से कुछ नक्षत्र बेहद कोमल होते हैं तो कुछ उग्र और कठोर होते हैं. उग्र नक्षत्र वालों को मूल नक्षत्र, सतईसा या गंडात कहा जाता है. नक्षत्र मंडल में यह 19वें स्थान पर आते हैं. इस नक्षत्र में जन्मे बच्चों कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ती हैं. इस नक्षत्र की शांति के लिए खास पूजा की जाती है. ताकि बच्चे को नकारात्मक प्रभाव से बचाया जा सके.
मूल नक्षत्र में जन्मे बच्चे (Mool Nakshatra)
मूल नक्षत्र में जन्मे लोगों पर गुरु और केतु का सीधा प्रभाव पड़ता है. जहां केतु कभी नकरात्मक तो कभी सकारात्मक असर डालता है तो वहीं गुरु हर बुरे प्रभाव को सही कर जीवन में प्रकाश डालने का काम करते हैं. मूल, ज्येष्ठा, आश्लेषा, आश्विन, मेघा और रेवती ये 6 मूल नक्षत्र कहलाते हैं. इनमें से किसी भी नक्षत्र में जन्मे बच्चे का स्वास्थ्य थोड़ा कमजोर होता है.
मान्यताओं के अनुसार अगर बच्चे ने इन नक्षत्र में जन्म लिया है तो पिता को तब तक बच्चे का मुख नहीं देखना चाहिए, जब तक कि उस बच्चे का मूल शांत ना करवा लिया जाए. इस नक्षत्र में जन्मे बच्चे को जन्म लेने के 27 दिन बाद ही मूल नक्षत्र शांत करवाने चाहिए. इसका निर्णय नक्षत्रों और कुंडलियों के आधार पर किया जाना चाहिए. बच्चे के जन्म के 8 साल के बाद किसी भी मूल नक्षत्र का प्रभाव ज्यादा नहीं रह जाता है. कुआं पूजन परंपरा से भी इन ग्रह-नक्षत्रों को शांत किया जाता है.
कुआं पूजन परंपरा (Kuan Poojan Niyam)
हिंदू धर्म में कुआं पूजन की परंपरा का विशेष महत्व होता है. यह परंपरा काफी पुरानी है. यह परंपरा श्रीकृष्ण के जन्म से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि कृष्ण के जन्म के ग्यारहवें दिन माता यशोदा ने जलवा पूजा की थी. जलवा पूजन को ही जल यानी कुआं पूजा कहते हैं. यह पूजन पुत्र प्राप्ति पर किया जाता है. खासतौर से मूल नक्षत्रों में जन्मे बच्चों के लिए यह पूजा जरूरी मानी जाती है.
इसके लिए बच्चे और मां को गुनगुने पानी से स्नान करा कर नए कपड़े पहनाए जाते हैं. बच्चे की मां या घर की बड़ी महिला माथे पर एक खाली कलश और चाकू रखती है और मंगलगीत गाते हुए महिलाओं के साथ कुआं के पास पहुंचती है. पूजा के लिए सबसे पहले कुएं के पास आटे और कुमकुम से स्वास्तिक बनाकर भोग लगाया जाता है. इसके बाद पूजा की जाती है.
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