Adi Shankaracharya Jayanti 2024: पूरे देश में सनातन धर्म की अलख जगाने का काम शंकराचार्य आदि गुरु ने ही किया था. हिंदूओं को संगठित करने में आदि शंकराचार्य की अहम भूमिका मानी जाती है. हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार आदि भगवान शंकर का अवतार माने गए है.
हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार के लिए इन्होंने लगभग पूरे भारत की यात्रा की और बहुत छोटी सी उम्र में ही कई महान कार्य किए. वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी 12 मई 2024 आदि शंकराचार्य की 1236वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी. आइए आदि शंकराचार्य की जयंती पर जानें उनसे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें.
कौन थे आदि शंकराचार्य ? (Who is Adi Shankaracharya Jayanti)
आदि शंकराचार्य हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरू थे, जिन्हें हिंदुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में एक माना जाता है. आदि शंकराचार्य, चमकदार आध्यात्मिक प्रकाश के अद्भुत स्रोत थे। उन्होंने सारी भारत भूमि को अपने ज्ञान से प्रकाशमान किया.
सनातन धर्म को मजबूत करने के लिए आदि शंकराचार्य ने भारत में 4 मठों (Four math in india) की स्थापना भी की, जिसमें गोवर्धन, जगन्नाथपुरी (उड़ीसा) पूर्व में, पश्चिम में द्वारका शारदामठ (गुजरात), ज्योतिर्मठ बद्रीधाम (उत्तराखंड) उत्तर में , दक्षिण में शृंगेरी मठ, रामेश्वरम (तमिलनाडु) शामिल है.
छोटी सी उम्र में किया महान काम
788 ई.पू. केरल स्थित कलाड़ी में शंकर नाम के एक बालक का जन्म हुआ. दो साल की उम्र में इस बालक ने धाराप्रवाह संस्कृत बोलने और लिखने में महारत हासिल की. चार साल का होते होते वे सभी वेदों का पाठ करने में सक्षम थे और 12 की उम्र में उन्होंने संन्यास ले कर घर छोड़ दिया था.
पूरे भारत में सनातन हिंदू धर्म को पुनर्जीवित किया
बालक शंकर ने मौजूदा हिंदू धर्म के सिद्धांतों से कहीं आगे अद्वैत दर्शन के बारे में लोगों को ज्ञान देना शुरू कर दिया. छोटी उम्र में भी उन्होंने शिष्य इकट्ठा कर लिये थे, जिनके साथ उन्होंने आध्यात्मिक विज्ञान को फिर से स्थापित करने के लिये देश भर में घूमना शुरू कर दिया था.
12 से 32 की उम्र तक उन 20 सालों में उन्होंने हिंदुत्व की रक्षा के लिए भारत के चारों कोनों की कई यात्रायें कीं - उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम. मठों में शंकराचार्य की परंपरा अभी तक चली आ रही है. ये हिंदू धर्म में सबसे सर्वोच्च पद माना जाता है.
कैसे होता है शंकराचार्य का चयन?
शंकराचार्य के पद पर बैठने वाले व्यक्ति को त्यागी, दंडी संन्यासी, संस्कृत, चतुर्वेद, वेदांत ब्राह्मण, ब्रह्मचारी और पुराणों का ज्ञान होना बेहद जरूरी है. इसके साथ ही, उन्हें अपने गृहस्थ जीवन, मुंडन, पिंडदान और रूद्राक्ष धारण करना काफी अहम माना जाता है. शंकराचार्य बनने के लिए ब्राह्मण होना अनिवार्य है, जिन्हें चारों वेद और छह वेदांगों का ज्ञाता होना चाहिए.
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