(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Bharat NCAP: क्या है भारत का नया सेफ्टी प्रोटोकॉल, विस्तार से जानिए भारत एनसीएपी से जुड़ी सारी बातें
भारत एनसीएपी प्रोग्राम के तहत एक कार के टेस्टिंग की लागत लगभग 60 लाख रुपये होगी, जबकि विदेश में इसी तरह के टेस्टिंग की लागत लगभग 2.5 करोड़ रुपये होती है.
Bharat NCAP In Detail: भारत ने आधा दर्जन अन्य देशों और जियोग्राफिक क्षेत्रों में शामिल होकर अपनी स्वयं की क्रैश टेस्ट रेटिंग इवोल्यूशन सिस्टम शुरू किया है. क्रैश टेस्ट किसी वाहन के सेफ्टी मापदंडों का आकलन करने के लिए नियंत्रित वातावरण में टक्कर करा के इंपैक्ट की जांच करना है. यह नया भारत न्यू कार असेसमेंट प्रोग्राम मानदंड 1 अक्टूबर से लागू होंगे.
क्या है भारत एनसीएपी?
यह मानदंड आठ लोगों तक बैठने की अनुमति वाले और 3.5 टन से कम वजन वाले मोटर वाहनों के सुरक्षा मानकों को परिभाषित करते हैं, जो या तो देश में निर्मित या आयात करके बेचे जाते हैं. इस मानदंड को तैयार करने का काम 2015 में शुरू हुआ था. ये मानक ग्राहकों को वाहन खरीदने से पहले उसकी दुर्घटना सुरक्षा की तुलना करने के लिए एक ऑब्जेक्टिव मीट्रिक प्रदान करेंगे, और निर्माताओं को मॉडलों की सुरक्षा रेटिंग में बेहतर सुधार करने के लिए प्रेरित करेंगे. भारत एनसीएपी प्रोटोकॉल, ग्लोबल क्रैश टेस्ट प्रोटोकॉल से मिलता जुलता है और इसकी रेटिंग 1 स्टार से 5 तक होगी, यानि जितना अधिक एनसीएपी स्कोर (स्टार), उतनी ही सुरक्षित गाड़ी होगी. इस मूल्यांकन में (i) वयस्क ऑक्यूपियर प्रोटेक्शन (एओपी), (ii) चाइल्ड ऑक्यूपियर प्रोटेक्शन (सीओपी), और (iii) सुरक्षा सहायता टेक्नोलॉजीज का फिटमेंट शामिल होगा. इसके लिए तीन परीक्षण किए जाएंगे: एक फ्रंटल इम्पैक्ट टेस्ट, एक साइड इम्पैक्ट टेस्ट और एक साइड पोल इम्पैक्ट टेस्ट. इन परीक्षणों में वाहन को एओपी और सीओपी के लिए अलग-अलग स्टार रेटिंग दी जाएगी. इसमें फ्रंट इम्पैक्ट टेस्टिंग 64 किमी/घंटा की स्पीड से ऑफसेट डिफॉर्मेबल बैरियर के अगेंस्ट होगा, जो कि 56 किमी/घंटा से अधिक है. पोल इंपैक्ट टेस्टिंग केवल 3 स्टार और उससे अधिक रेटिंग प्राप्त कारों के लिए ही किया जाएगा. साथ ही, 3-स्टार या इससे अधिक रेटिंग के लिए कार में इलेक्ट्रॉनिक स्टेबिलिटी कंट्रोल और फ्रंट सीट बेल्ट रिमाइंडर होना अनिवार्य है. ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एआरएआई) को पुणे और चाकन में अपनी लैब में इसके तहत वाहनों को टेस्ट करना अनिवार्य है.
क्यों जरूरी है ये टेस्टिंग
अब तक, कार निर्माता कंपनियां टेस्टिंग और स्टार ग्रेडिंग के लिए विदेशों में अपनी कारों को भेजती हैं. जो कि काफी खर्चीला और अधिक टाइम कंज्यूम करने वाला है. इन टेस्टिंग्स में बड़े पैमाने पर पेट्रोल और डीजल कारों को शामिल किया गया है, जबकि भारत एनसीएपी, सीएनजी और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए भी क्रैश टेस्टिंग और मूल्यांकन करेगा. इन नए मानदंडों से देश में बेची जाने वाली कारों की क्वालिटी और भारत निर्मित ऑटोमोबाइल की एक्सपोर्ट एबिलिटी में सुधार होने की संभावना है. धीरे धीरे इस कार्यक्रम से ग्राहकों में जागरूकता और कारों के अधिक सुरक्षित होने की उम्मीद की जा रही है. जिससे कंपनियां भी अधिक सुरक्षा पर ध्यान देने के लिए प्रेरित होंगी.
सड़क दुर्घटनाओं को कम करना है लक्ष्य
भारत में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में लगभग 1.5 लाख लोगों की मौत होती है, और सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतों की यह दर दुनिया में सबसे अधिक है. स्टॉकहोम घोषणा के तहत, भारत 2030 तक सड़क यातायात में होने वाली मौतों और चोटों की संख्या को 50 प्रतिशत तक कम करने के लिए प्रतिबद्ध है.
ग्लोबल एनसीएपी और भारत एनसीएपी में अंतर
दुर्घटना में सुरक्षा के आधार पर कारों को रेटिंग देने की शुरुआत सबसे पहले 1970 के दशक के अंत में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई. फिर बाद में अन्य स्थानों पर भी इसी तरह के कार्यक्रम लॉन्च किए गए, जिसमें यूरो एनसीएपी, ऑस्ट्रेलियन एनसीएपी, जापान एनसीएपी, आसियान एनसीएपी और चीन एनसीएपी शामिल हैं, जो काफी हद तक अमेरिकी फॉर्मेट पर बेस्ड थे.
2011 में, यूनाइटेड किंगडम-बीआरडी चैरिटी टुवर्ड्स ज़ीरो फाउंडेशन, जिसे अन्य लोगों के अलावा, ब्लूमबर्ग फिलैंथ्रोपीज, एफआईए फाउंडेशन, इंटरनेशनल कंज्यूमर टेस्टिंग एंड रिसर्च और रोड सेफ्टी फंड ने भी प्रचारित किया था, ने अलग- अलग एनसीएपी के बीच कोऑर्डिनेशन में सुधार के लिए ग्लोबल एनसीएपी का गठन किया.
भारत एनसीएपी मानदंड ग्लोबल एनसीएपी के फॉर्मेट के अनुरूप हैं, जिसने क्रैश टेस्टिंग्स के भारतीय वर्जन को तैयार करने में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के साथ काम किया है. केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने 22 अगस्त को ऑटोमोबाइल उद्योग के सहयोगात्मक प्रयासों की सराहना की और कहा कि भारत एनसीएपी को पहले ही 30 से अधिक टेस्टिंग रिक्वेस्ट मिल चुकी है. उन्होंने कहा, भारत एनसीएपी प्रोग्राम के तहत एक कार के टेस्टिंग की लागत लगभग 60 लाख रुपये होगी, जबकि विदेश में इसी तरह के टेस्टिंग की लागत लगभग 2.5 करोड़ रुपये होती है. यह श्रेय ग्लोबल एनसीएपी को जाता है, जिसने जनवरी 2014 में शुरू हुई क्रैश टेस्टिंग की सीरीज ने ऑटोमोटिव सेफ्टी को हाईलाइट किया और निर्माताओं को भारत में बेची जाने वाली कारों में सुरक्षा को और एडवांस बनाने की आवश्यकता के प्रति संवेदनशील बनाया. ग्लोबल एनसीएपी ने निर्माताओं को टेस्टिंग के बारे में सूचित नहीं किया, और शोरूम से कारें चुनीं, जिससे भारतीय ऑटोमोबाइल कंपनियों को काफी परेशानी हुई. अब अधिकांश भारतीय कार निर्माताओं ने भारत एनसीएपी को एक सकारात्मक कदम बताया है.
इस मौके पर मारुति सुजुकी के कॉर्पोरेट मामलों के कार्यकारी अधिकारी, राहुल भारती ने कहा कि, “भारत में लॉन्च होने वाली कोई भी कार सरकार से निर्धारित अनिवार्य सुरक्षा मानकों का पालन करती है. अतिरिक्त सुरक्षा जानकारी चाहने वाले उपभोक्ताओं के लिए, भारत एनसीएपी प्रणाली ग्राहक को एक सूचित विकल्प चुनने के लिए सशक्त बनाने के लिए एक प्रामाणिक और उद्देश्यपूर्ण रेटिंग प्रणाली है.”