Bombay High Court Verdict on Car Accident: बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण केस पर फैसला देते हुए कार के टायर फटने को एक्ट ऑफ गॉड न मानते हुए, उसे इंसान की असावधानी करार दिया है और इंश्योरेंस कंपनी को हर्जाना देने का आदेश दिया है.


कोर्ट ने ये फैसला एक कार एक्सीडेंट के मामले में दिया है, जिसमें कार के टायर फटने के चलते एक व्यक्ति की मृत्यु हो गयी थी. हालांकि कार का इंश्योरेंस करने वाली कंपनी ने ये कहकर कम्पन्सेशन देने से इनकार कर दिया था, कि ये एक्ट ऑफ गॉड है.


2010 में हुआ था हादसा


जानकारी के मुताबिक, ये कार हादसा 25 अक्टूबर 2010 को हुआ था, जब पटवर्धन अपने दो दोस्तों के साथ एक फंक्शन को अटेंड कर के पुणे से वापस मुंबई लौट रहे था. वापस लौटते वक्त पटवर्धन का दोस्त जिसकी कार थी, कार को गलत और असावधानीपूर्वक ड्राइव कर रहा था. साथ ही स्पीड भी काफी तेज थी. उसी समय कार का पिछला टायर फट जाता है और कार गहरी खायी में गिर जाती है. जिसमें पटवर्धन की मौत हो जाती है. पटवर्धन अपने परिवार में इकलौता कमाने वाला व्यक्ति था. उसके पीछे उसके बुजुर्ग माता-पिता, उसकी पत्नी (34) और एक बेटी (7) रह जाते हैं. पटवर्धन एक प्राइवेट कंपनी में अस्सिस्टेंट मैनेजर तौर पर काम करता था, जिसकी सैलेरी 69,000 थी.


कोर्ट ने इंश्योरेंस कंपनी को मुआवजा देने का आदेश दिया


मोटर एक्सीडेंट क्लेम्स ट्रिब्यूनल, पुणे ने इंश्योरेंस कंपनी को पटवर्धन के परिवार को 9% ब्याज के साथ 1.25 करोड़ रूपये देने का आदेश दिया है. हालांकि इंश्योरेंस कंपनी ने ट्रिब्यूनल के 7 जून 2016 के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए, मुआवजे को काफी ज्यादा बताते हुए तर्क दिया था, कि कार का टायर फटना एक्ट ऑफ़ गॉड का मामला है, न कि ड्राइवर की असावधानी का.


गाड़ी का टायर फटना एक्ट ऑफ गॉड नहीं- बॉम्बे हाई कोर्ट


लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट के जज एस जी डिगे ने "एक्ट ऑफ़ गॉड को एक नियंत्रण करने वाली ताकत के रूप में परिभाषित किया, जिसके लिए किसी इंसान को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. लेकिन कार का टायर फटना एक मानवीय गलती का नतीजा है, जिसे एक्ट ऑफ़ गॉड नहीं कहा जा सकता है."


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