SIAM Says: सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स के अध्यक्ष केनिची आयुकावा ने यह जानकारी दी है कि अगले 25 वर्षों में भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग का लक्ष्य वाहनों के सभी सेगमेंट में ग्लोबल स्तर पर शीर्ष दो उत्पादकों में शामिल होना है. सियाम (SIAM) के 62वें वार्षिक सत्र में आयुकावा ने कहा कि, भारत की प्लान विजन 2047 के अंतर्गत अगले 25 सालों में ऑटोमोबाइल क्षेत्र की सभी निर्माण वैल्यू चेन में करीब शतप्रतिशत आत्मनिर्भर होने का है.
क्या है भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग का प्लान
आयुकावा ने कहा, "ऑटो उद्योग ने आजादी 100 वर्ष पर भारत के लिए एक विजन स्टेटमेंट बनाया है. इसके अनुसार, भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग दुनियाभर में इस उद्योग के हर सेगमेंट में दो शीर्ष उत्पादकों में से एक होगा." साथ ही, उद्योग का लक्ष्य अगले 25 सालों में लाइफ साइकिल के आधार पर स्वच्छ ऊर्जा वाहनों का निर्माण एक प्रमुख हिस्सा है इसका मतलब बैटरी इलेक्ट्रिक, इथेनॉल, फ्लेक्स ईंधन, सीएनजी, बायो-सीएनजी, हाइब्रिड इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन सहित सभी व्यवहारिक तकनीकें इस प्लान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
क्या क्या उठाने होगें कदम
आयुकावा के अनुसार इस महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इंडस्ट्री को कुछ प्रमुख बदलावों की जरूरत होगी जैसे कि प्रतिस्पर्धात्मकता को एकमात्र लक्ष्य समझ कर उसका पीछा करना और दूसरा व्यापार करने में आसानी की क्षमता को विकसित करना. एक लॉन्ग टर्म रेगुलेटरी रोडमैप निवेश, तकनीकों और प्रोडक्शन के विकास, इस योजना को बनाने में मददगार हो सकता है. आयुकावा के अनुसार इंडस्ट्री को कहा कि सक्षम तकनीकों और नई ऊर्जा के इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा. साथ ही हमें सुरक्षा, टेलीमैटिक्स, इंफोटेनमेंट, कस्टमर की सुविधाओं जैसे बिंदुओं पर तेजी से कार्य करना होगा.
वर्तमान में क्या है स्थिति
वर्तमान बाजार के बारे में आयुकावा ने कहा कि घरेलू ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री महामारी शुरू होने से पहले ही एक लंबी मंदी के दौर से गुजर रहा है. उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि 1990 से 2000 के दशक में पैसेंजर व्हीकल सैगमेंट में 12.6% की CAGR (चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) से वृद्धि हुई. जो 2000 से 2010 के अगले दशक में 10.3% और 2010 से 2020 के दशक में केवल 3.6% ही रह गया. जिसमें पिछले पांच सालों में तेजी से गिरावट देखने को मिली है.
क्या हैं मंदी के कारण
आयुकावा ने कहा कि महामारी के साथ ही मांग और आपूर्ति दोनों पक्षों पर कई अन्य चुनौतियों का सम्मिलित रूप से ऑटो उद्योग के विकास को अधिक प्रभावित किया. वर्तमान में उद्योग एक ऐसे दौर से गुजर रहा है, जिसमें कुछ सैगमेंट में महामारी के बाद सुधार हो रहा है तो कुछ अभी भी मंदी से उबरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उनके अनुसार एंट्री लेवल की कारों और दोपहिया वाहनों के सेगमेंट में लागत में बढ़ोतरी होने के बाद इनके मांग में कमी देखी जा रही है और जिन सेगमेंट्स में तेजी देखी जा रही है वे सेमीकंडक्टर की कमी के कारण मांग को पूरा नहीं कर पा रहे हैं.
अभी किस स्थान पर है भारत?
आयुकावा ने कहा कि ऑटो उद्योग के सभी सेगमेंट्स अभी भी साल 2018-19 के आंकड़ों से नीचे हैं. उन्होंने कहा कि भारतीय ऑटो उद्योग देश के आर्थिक विकास का एक प्रमुख स्रोत है, जिसका कारोबार करीब 120 बिलियन अमरीकी डालर है जो कि देश के जीडीपी का लगभग 6 प्रतिशत है और इसका भारत के मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्शन में 35 प्रतिशत का योगदान है. यह उद्योग देश के 3 करोड़ से अधिक लोगों के लिए रोजगार उत्पन्न करता है और जीएसटी में करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये का योगदान देता है. उन्होंने कहा कि भारत टू व्हीलर्स के सेगमेंट में दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा, पैसेंजर वाहनों में चौथा सबसे बड़ा और वाणिज्यिक वाहनों में सातवां सबसे बड़ा उत्पादक है.
यह भी पढ़ें :-
Top selling Cars: ये रही सबसे ज्यादा बिकने वाली SUVs और MUVs की लिस्ट
Best CNG Cars: ढेर सारे फीचर्स और जबर्दस्त माइलेज के साथ आती हैं ये CNG कारें
Car loan Information:
Calculate Car Loan EMI