Road Safety in India: हिन्दुस्तान टाइम्स की एक खबर के मुताबिक, भारत दुनिया में कई चीजों के मामले में दुनिया के कई देशों से आगे है, लेकिन उनमें एक ऐसी चीज में भी आगे है, जो ख़ुशी देने वाली नहीं है और वो है, हर साल सड़क दुर्घटना में होने वाली मौतें. उसमें घायल और विकलांग होने वाले लोग जिनकी संख्या काफी ज्यादा है. हर साल लगभग 1.5 लाख लोग भारत में सड़क दुर्घटना में अपनी जान गंवा देते है और लाखों लोग बाद बाकी की पूरी जिंदगी विकलांग बनकर गुजारते हैं. FICCI-EY की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी दुनिया में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों में 11 प्रतिशत हिस्सेदारी भारत की होती हैं, जबकि गाड़ियों की संख्या दुनिया के मुकाबले केवल 1 प्रतिशत ही है.
सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतें या गंभीर चोटों की वजह से लाखों परिवारों को ऐसे नुकसान का सामना करना पड़ता है, जिसकी भरपाई करना संभव ही नहीं हो पाता. जिसका सीधा असर परिवार की आर्थिक स्थिति पर पड़ता है. वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत हर साल सड़क दुर्घटनाओं के चलते अपनी जीडीपी में 3-5 प्रतिशत के नुकसान का सामना कर रहा है, जिसके आंकड़े काफी डरवाने और चौकाने वाले हैं.
वहीं, नई टेक्नोलॉजी के चलते अब गाड़ियां पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा सुरक्षित होती चली जा रही हैं. भारत में गांव से लेकर मेट्रो शहरों तक, सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर भी लगातार बेहतर हो रहा है. इसके अलावा सरकार लगातार कानूनों में बदलाव कर, उन्हें और ज्यादा सख्त बनाती जा रही है, ताकि ऑटोमोबाइल कंपनिया अपनी गाड़ियों को और ज्यादा सुरक्षित बनायें. ड्राइवर और राइडर्स के लिए ट्रैफिक नियम भी लगातार काफी टाइट होते जा रहे हैं. इसके बावजूद भी इतनी बड़ी संख्या में सड़क हादसे क्यों देखने को मिल रहे हैं? इसका जबाव है, ड्राइवर से लेकर, पैदल चलने वालों के साथ-साथ कुछ हद तक सड़कें भी इसके लिए जिम्मेदार हैं.
ऐसी स्थिति में ये सवाल पूछना काफी जरुरी हो जाता है, कि क्या एक अच्छी सेफ्टी रेटिंग वाली कार सेफ्टी के लिए काफी है? जिसका सीधा सा जबाव न है. क्योंकि केवल एक अच्छी NCAP रेटिंग वाली कार, आपको सड़क पर दुर्घटना से बचाने की गारंटी नहीं दे सकती. क्योंकि इसकी भी कुछ सीमायें होती हैं और कुछ ऐसी बातें जिन्हें इसके जरिये कवर नहीं किया जा सकता. जो दुर्घटना का कारण बन सकती हैं.
NCAP टेस्ट सुरक्षा की गारंटी क्यों नहीं देता?
इस टेस्ट के होने से इस बात की गारंटी नहीं मिल जाती, कि वास्तविक दुनिया में होने वाली दुर्घटना में यात्री पूरी तरह सुरक्षित रहेगा. क्योंकि इसकी कुछ सीमाएं हैं, जिसके बारे में हम आगे बताने जा रहे हैं-
टेस्ट और वास्तविक दुनिया में अंतर होता है
गाड़ी को सेफ्टी रेटिंग दिया जाने वाला टेस्ट एक लैब में होता है. जबकि वास्तविक दुनिया में होने वाली दुर्घटना, अनिश्चित और भीड़-भाड़ से घिरी लोगों के बीच हो सकती है. जिसमें मौजूद लोग, अलग-अलग गाड़ियां और लोग इसे और भी ज्यादा मुश्किल बना देते हैं.
टेस्ट के समय गाड़ी की एक निश्चित स्पीड होती है
जब किसी भी गाड़ी का NCAP टेस्ट किया जाता है, तब उसकी स्पीड को 30 किलोमीटर से लेकर साइड इम्पैक्ट के लिए 64 किलोमीटर तक रखा जाता है. जबकि हकीकत में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं का कारण 100 से ज्यादा स्पीड देखने को मिलती है. यानि कि ज्यादा स्पीड मतलब बड़ा एक्सीडेंट और ज्यादा नुकसान.
टकराने वाली गाड़ियों के बीच अंतर
एक्सीडेंट के समय सबसे जरुरी फैक्टर जो दुर्घटना की गंभीरता डिसाइड करता है और वो है क्रैश कम्पैटिबिलिटी, जोकि NCAP टेस्ट में एक निश्चित लंबाई, चौड़ाई और वजन वाली गाड़ी के साथ निश्चित स्पीड पर किया जाता है. जबकि हकीकत में सिचुएशन कुछ और हो सकती है. जैसे कि कार की टक्कर ट्रक से हो सकती है. जिसका रेटिंग के लिए होने वाले क्रैश टेस्ट से कोई लेना देना नहीं है और सड़क पर इस तरह की घटनाएं ज्यादा देखने को मिलती हैं.
ज्यादातर कार खरीदार चाइल्ड सेफ्टी पर ध्यान नहीं देते
क्रैश टेस्ट के समय पिछली सीट पर बच्चों की डमी को सेफ्टी मानक के साथ बिठाकर टेस्ट किया जाता है. जबकि हकीकत में ऐसा न के बराबर देखने को मिलता है, कि कोई भी कार में आते-जाते समय अपने बच्चे को इतनी सेफ्टी के साथ कार में लेकर जाता है और बच्चा किसी की गोद में न बैठा हो. जोकि वास्तविक दुनिया में होने वाली दुर्घटना से काफी दूर है.
ड्राइविंग का तरीका
गाड़ी और उसमें बैठने वालों की सेफ्टी के लिए ड्राइविंग का तरीका सबसे जरुरी रोल प्ले करता है. लापरवाही, ओवर स्पीडिंग, रैश ड्राइविंग और ओवर कॉन्फिडेंस ज्यादातर सड़क दुर्घटनाओं की वजह बनते है. एक फाइव स्टार रेटिंग कार को लापरवाही के साथ चलाने पर ड्राइवर और पैसेंजर किसी के लिए भी सेफ्टी की उम्मीद नहीं की जा सकती. इसलिए किसी कार का क्रैश टेस्ट में अच्छी रेटिंग के साथ आना, तब तक आपको सुरक्षित नहीं रख सकता, जब तक खुद भी सावधानी नहीं बरती जाती.
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