एक समय था, जब भारत में कारें लग्जरी समझी जाती थीं, लेकिन अब वे जरूरत बन गई हैं. खासकर कोविड महामारी के समय सार्वजनिक परिवहन के मामले में आई दिक्कतों व स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों ने कार को लग्जरी से जरूरत बनाने में योगदान दिया. दूसरी ओर भारत में तेजी से मध्यम वर्ग के उभार और खर्च योग्य आमदनी यानी डिस्पोजेबल इनकम में वृद्धि ने भी कार को पहले से ज्यादा एक्सेसेबल बना दिया. स्वाभाविक बात है कि देश में अब कार खरीदने वालों की संख्या बढ़ी है, जिसकी गवाही कंपनियों के बिक्री के आंकड़े देते हैं. अब आपको हम एक ऐसी बात बताएंगे, जो जानकर आप हैरान रह जाएंगे. आप जब भी कोई नई कार खरीदते हैं, तो उसमें आधे से ज्यादा पैसा सीधे सरकारी खजाने में चला जाता है.
आलोचना कर चुके हैं मारुति वाले भार्गव
हम आपको आज कार खरीदने में आने वाली लागत और उसके ब्रेकअप को विस्तार से समझाने वाले हैं, लेकिन उससे पहले कुछ बुनियादी मुद्दों पर मोटा-मोटी बात कर लेते हैं. अगर आप खबरों में दिलचस्पी रखते हैं तो आपको मारुति सुजुकी के चेयरमैन आरसी भार्गव का नाम जरूर मालूम होगा. भार्गव कई बार भारत में कारों पर टैक्सेशन को लेकर सरकार की आलोचना कर चुके हैं. उन्होंने कई मौकों पर यह दोहराया है कि 50 फीसदी टैक्स वसूलकर आप कार इंडस्ट्री को आगे नहीं बढ़ा सकते हैं.
कार को सरकार मानती है लग्जरी आइटम
अब कार खरीदने की पूरी लागत को विस्तार से समझते हैं. सबसे पहले कार पर लगने वाले टैक्स के बारे में जान लेते हैं. कार खरीदने में सबसे पहली बारी आएगी जीएसटी की. भारत में कारों पर लग्जरी आइटम वाला टैक्स यानी सबसे ऊपर वाला ब्रैकेट लागू होता है. मतलब जीएसटी की दर 28 फीसदी हो गई. इसके ऊपर से कार की कैटेगरी के आधार पर सेस लगता है, जिसे नीचे दिए गए चार्ट से समझ सकते हैं:
कार की कैटेगरी | सेस की दर |
4 मीटर तक की 1.2 लीटर इंजन पेट्रोल कार | 1 फीसदी |
4 मीटर तक की 1.5 लीटर डीजल इंजन कार | 3 फीसदी |
4 मीटर से बड़ी और 2 लीटर से छोटे इंजन वाली कार | 17 फीसदी |
4 मीटर से बड़ी एसयूवी/सेडान (ग्राउंड क्लियरेंस 170 एमएम तक) | 20 फीसदी |
4 मीटर से बड़ी एसयूवी/सेडान (ग्राउंड क्लियरेंस 170 एमएम से ज्यादा) | 22 फीसदी |
जीएसटी के बाद सेस और इतने सारे टैक्स
कार पर टैक्सों का सिलसिला जीएसटी के बाद सेस तक ही नहीं रहता. इसके बाद बारी आती है रोड टैक्स की, जो राज्यों के हिसाब से 3 फीसदी से 24 फीसदी तक है. अगर आप शोपीस के लिए कार खरीदते हैं, मतलब कि आपको घर में पार्क करके रखना है सिर्फ, तो टैक्सों का सिलसिला यहीं तक, लेकिन अगर आप उसे लेकर सड़क पर उतरना चाहते हैं तो अभी और टैक्स भरना पड़ेगा. इंश्योरेंस कराएंगे, उसके प्रीमियम पर 18 फीसदी जीएसटी, पेट्रोल-डीजल भराएंगे तो उसमें लगभग आधा (अभी के हिसाब से मोटा-मोटी 50 रुपये प्रति लीटर मान लीजिए) एक्साइज व वैट में जाएगा, अगर गाड़ी में कुछ काम कराते हैं तो सारे स्पेयर पार्ट पर 28 फीसदी जीएसटी, लेबर चार्ज पर 28 फीसदी जीएसटी और अगर लोन को फोरक्लोज यानी समय से पहले बंद कराते हैं तो उसके लिए 18 फीसदी जीएसटी.
पैस कमाते ही भर देंगे इतना इनकम टैक्स
ये हो गई पूरी तस्वीर, लेकिन उसे देखने के बाद समझने के लिए और काम करना पड़ेगा. चूंकि आगे का काम जटिल है तो हम कोई एक औसत जैसी स्थिति लेकर समझेंगे. हम एक उदाहरण लेकर चलते हैं कि आपको 15 लाख रुपये की कोई कार पसंद है. अब अगर आप 15 लाख रुपये (एक्स-शोरूम) की कार खरीदना चाहते हैं तो आपको कमाना उससे ज्यादा पड़ेगा, क्योंकि 15 लाख की कमाई पर इनकम टैक्स भी देना है. इनकम टैक्स को कैलकुलेट करके जोड़ लें तो पता चलता है कि आपको 15 लाख रुपये की कार खरीदने के लिए 21.42 लाख रुपये कमाने की जरूरत होगी, क्योंकि इनकम टैक्स में 6.42 लाख रुपये चले जाएंगे.
1 रुपये की कार में 58 पैसे ले लेती है सरकार
अब 15 लाख रुपये की कार खरीदते ही जीएसटी और सेस में 5.20 लाख रुपये चले जाएंगे. अब मान लेते हैं कि आप कार 1 लाख किलोमीटर चलाते हैं तो आप पेट्रोल-डीजल पर खर्च करेंगे करीब 7.50 लाख रुपये. अब इस 7.50 लाख रुपये के खर्च के लिए आपको फिर से 10.75 लाख रुपये से ज्यादा कमाना होगा, जिसके लिए भी आप 3.25 लाख रुपये के आस-पास इनकम टैक्स भरेंगे. वहीं डीजल-पेट्रोल का जो पैसा भुगतान करेंगे, उसमें भी वैट और एक्साइज जाएगा. मतलब इस स्थिति में आप सिर्फ अलग-अलग टैक्स से सरकार को 58 फीसदी का भुगतान करेंगे. अगर कार की रेंज बढ़ी तो टैक्स भी बढ़ जाएगा.
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