Diesel Engines: लगातार घट रही है डीजल वाहनों की संख्या, ऑटो कंपनियों ने बनाई ये स्ट्रेटजी
देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी अपनी गाड़ियों के डीजल वेरिएंट को 1 अप्रैल, 2020 से बनाना बंद कर चुकी है. इसके अलावा टाटा मोटर्स, महिंद्रा और होंडा ने डीजल इंजन में कमी की है.
Nitin Gadkari on Diesel Cars: हाल ही में एक कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा, कि लोगों को पेट्रोल-डीजल से चलने वाली गाड़ियों (डीजल सेचलने वाले जेनरेटर भी) से दूरी बनाने की जरुरत है. लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है, तब इन गाड़ियों पर पॉल्यूशन टैक्स के रूप में अलग से 10% जीएसटी लगाने के लिए वित्त मंत्री के सामने प्रस्ताव रख सकते हैं.
हालांकि, इसके कुछ समय बाद ही गडकरी ने स्पष्ट किया कि "सरकार के पास फिलहाल ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है." जबकि सरकार डीजल जैसे फ्यूल के चलते होने वाले एयर पॉल्यूशन में कमी लाने के लिए कमिटमेंट कर चुकी है. साथ ही साथ ऑटो सेक्टर में बढ़ती डिमांड के लिए भी ये जरुरी है, कि पॉल्यूशन करने वाले ईंधन की जगह क्लीन और ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा दिया जाये.
गडकरी के इस बयान के बाद, ऑटो के शेयर में गिरावट देखने को मिली. जबकि बयान पर स्पष्टीकरण भी दिया गया. लेकिन इसे इंडस्ट्री में डीजल के विरोध के तौर पर ही लिया गया. ये बयान पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा नियुक्त की गयी एक समिति के लगभग तीन महीने बाद आया है, जिसने 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों के लिए 2027 तक डीजल गाड़ियों पर बन लगाने की शिफारिश की है.
सरकार की तरफ से डीजल कारों पर 28% टैक्स लिया जाता है, साथ ही इंजन क्षमता के आधार पर लगने वाले अतिरिक्त उपकर को भी जोड़ लें, तो कुल टैक्स लगभग 50% हो जाता है.
डीजल का विरोध क्यों?
इसकी सीधी सी वजह, गडकरी का बयान और पैनल की रिपोर्ट है. जो सरकार के ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन कम करने और देश के लिए 40% बिजली का उत्पादन रिन्यूएबल एनर्जी के रूप में करने के उद्देश्य की तरफ इशारा करती है. जिसका मकसद 2070 तक जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करना है.
हाइड्रोकार्बन सेक्टर के ऑफिसियल डेटा और पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल के मुताबिक, देश में पेट्रोलियम उत्पादों की खपत में डीजल की हिस्सेदारी लगभग 40 फीसद की है. जिसमें तकरीबन 87% ट्रांसपोर्टेशन में प्रयोग होता है. वहीं ट्रकों और बसों द्वारा इसकी खपत लगभग 68% तक की जाती है. देश के तीन राज्यों (उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा) में लगभग 40% डीजल की खपत होती है.
डीजल से चलने वाली कार?
देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी अपनी गाड़ियों के डीजल वेरिएंट को 1 अप्रैल, 2020 से बनाना बंद कर चुकी है. इसके अलावा टाटा मोटर्स, महिंद्रा और होंडा 1.2-L डीजल इंजन का उत्पादन बंद कर चुके हैं, डीजल वेरिएंट में अब केवल 1.5-L या इससे बड़े इंजन के साथ उपलब्ध हैं.
जबकि हुंडई और किआ अभी भी डीजल इंजन कारों की बिक्री कर रही हैं, साथ टोयोटा के पास इनोवा क्रिस्टा रेंज भी डीजल में उपलब्ध है. लेकिन ज्यादातर ऑटोमोबाइल कंपनियां 2020 के बाद से अपने डीजल पोर्टफोलियो को काफी हद तक कम करने के लिए आगे आयीं हैं. जिसके चलते डीजल की मांग में पैसेंजर गाड़ियों की हिस्सेदारी कम हुई है, जो इस समय में 16.5% है. 2013 ये 28.5% थी.
डीजल इंजन गाड़ियों से क्यों दूर हो रहीं ऑटोमोबाइल कंपनियां?
मारुति सुजुकी के साथ साथ बाकी कार निर्माताओं ने डीजल सेगमेंट से बाहर निकलने की घोषणा की, जिसकी वजह 1 अप्रैल, 2020 से लागू होने वाले नए बीएस-VI उत्सर्जन नियमों का लागू होना भी था. जिसके चलते डीजल इंजनों को अपग्रेड करने में काफी ज्यादा लागत थी, जिसके लिए कंपनियों की तरफ से तर्क दिया गया कि बीएस-IV से सीधे बीएस-VI में छलांग लगाने के सरकार के फैसले ने उनके पोर्टफोलियो में डीजल गाड़ियों को बनाए रखना मुश्किल बना दिया है. इसके अलावा, डीजल गड़ियों से सबसे बड़ा नुकसान इनसे होने वाला NOx का ज्यादा उत्सर्जन भी है, जोकि पेट्रोल गाड़ियों से मुकाबले में इन्हें पीछे खड़ा करता है.
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