Lithium Ion in Jammu-Kashmir: डेक्कन हेराल्ड की एक खबर के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में मिले कुल 5.9 मिलियन टन लिथियम भंडार में से केवल 10 प्रतिशत के यूज से छह करोड़ इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बिजली दी जा सकती है, जबकि भारत की सड़कों पर लगभग 4 करोड़ गाड़ियां ही हैं. यानि मौजूद संख्या से 1.5 गुना ज्यादा.
फोर्टम चार्ज एंड ड्राइव इंडिया के कार्यकारी निदेशक अवधेश कुमार झा के मुताबिक, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी ही भविष्य है. जम्मू-कश्मीर और राजस्थान में मिले लिथियम भंडार से ग्रीन एनर्जी में बदलाव काफी आसान हो जाएगा. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में 5.9 मिलियन टन लिथियम भंडार की खोज की है. वहीं जानकारी के मुताबिक, केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन को हरी झंडी दे दी, जिससे लिथियम भंडार की नीलामी का रास्ता खुल जायेगा.
खान सचिव विवेक भारद्वाज ने हाल ही में कहा था, कि जम्मू और कश्मीर में लिथियम भंडार के कमर्शियल एक्सप्लॉयटेशन के लिए नीलामी इस साल के अंत तक शुरू होने की संभावना है.
झा ने कहा कि लिथियम भंडार के कमर्शियल एक्सप्लॉयटेशन से भारत में इलेक्ट्रिसिटी मोबिलिटी में बदलाव आसान और तेज हो जाएगा. लिथियम, जिसे अक्सर 'सफेद सोना' कहा जाता है, एक अलौह धातु है और ईवी बैटरी में प्रयोग जाने वाली जरुरी चीजों में से एक है. एक सामान्य इलेक्ट्रिक गाड़ी की बैटरी और लिथियम-आयन बैटरी में लगभग 8 किग्रा होती है. भारत वर्तमान में अपनी लिथियम-आयन बैटरी जरुरत के लिए इंपोर्ट पर निर्भर है. पिछले साल संसद में केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारत में लिथियम-आयन बैटरी का इंपोर्ट 8,811 करोड़ रुपये था. जिसका लगभग 73% चीन से और 23.48% हांगकांग से किया गया था, यानि भारत में लिथियम-आयन बैटरियों का लगभग 96% हिस्सा चीन और हांगकांग से आता है. वियतनाम, मलेशिया, दक्षिण कोरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका लिथियम-आयन बैटरी के अन्य उत्पादन कर्ता हैं. वहीं आने वाले समय में लिथियम-आयन बैटरियों के इंपोर्ट में बढ़ोतरी होने की संभावना है, क्योंकि घरेलू बाजार में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की मैन्युफैक्चरिंग जोर पकड़ रही है. सरकार के लक्ष्य के मुताबिक, 2030 तक देश में बिकने वाली गाड़ियों में कम से कम 30 प्रतिशत हिस्सा इलेक्ट्रिक गाड़ियों का होगा, हालांकि अभी ये संख्या 1 प्रतिशत से भी कम है.
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