Emission Norms for Vehicle: देश और दुनिया में प्रदूषण की स्थिति काफी खराब होती जा रही है. इसी को ध्यान में रखते हुए वाहन निर्माता कंपनियों के लिए सरकार समय-समय पर मानक तय करती है. जिससे वाहनों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रण में रखा जा सके. भारत में इसकी शुरुआत दो दशक पहले CPCB (Central pollution Control Board) के तहत की गयी थी. भारत में लागू किये गए ये नियम यूरोपीय मानकों पर आधारित हैं. 2016 में सरकार ने बीएस5 को लागू न कर बीएस4 के बाद सीधे बीएस6 को लागू करने की घोषणा की थी. आइये हम आपको दोनों के अंतर को समझाते है.
बीएस4 (BS IV)
इन मानकों को 2017 में लागू किया गया था. ये मानकों को, इससे पहले वाले यानि BS3 मानकों की तुलना में काफी सख्त बनाया गया था. रिपोर्ट के अनुसार इन मानकों के लागू होने से ईंधन में सल्फर सामग्री, नाइट्रोजन ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन और पार्टिकुलेट मैटर की कमी दर्ज की गयी. पेट्रोल पर चलने वाले बीएस4 मानक वाले इंजन से प्रदूषण में 1.0 g/km के कार्बन मोनोऑक्साइड, 0.18 g/km हाइड्रोकार्बन और नाइट्रोजन ऑक्साइड और 0.025 के सांस लेने योग्य सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर निकलता था.
बीएस6 (BS VI)
मानकों में और सुधार करते हुए BS6 मानक लागू किये गए. जिसमें पेट्रोल वाहन से अधिकतम नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन 60 mg/km हो गया, जबकि BS4 मानक वाले वाहनों में यह 80 mg/km था. पेट्रोल वाहनों के लिए pm (Particulate Matter) की सीमा 4.5 mg/km से कम, जबकि डीजल ईंधन वाले वाहनों के लिए BS6 मानकों के तहत NOx उत्सर्जन की सीमा 80 mg/km तय की गयी है.
डीजल वाहनों के लिए मानदंड
अगर डीज़ल इंजन के लिए BS4 और BS6 मानकों की तुलना की जाये तो, BS4 के लिए इन मानकों की ऊपरी सीमा 250 mg /km रखी गयी थी और BS6 मानकों में इसकी सीमा 170 mg /km पर रखी गयी है. जो BS4 के लिए निर्धारित मानको से काफी कम है. इसके अलावा डीजल और पेट्रोल दोनों वाहनों के लिए pm की मानक सीमा 4.5 mg/km तय की गयी गई है. जो पहले BS4 मानकों के तहत डीजल व्हीकल के लिए 25 mg/km तय की गई थी.
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