Types of Electric Batteries: आप इलेक्ट्रिक व्हीकल खरीदने का प्लान कर रहे हैं? क्या आप जानते हैं कि इनमें इस्तेमाल होने वाली बैटरी कितने तरह की होती है? Tesla और Ford जैसी कंपनियां किन बैटरी का इस्तेमाल करती हैं? सबसे अहम सवाल कि इलेक्ट्रिक व्हीकल्स में इस्तेमाल होने वाली ये बैटरियां कितनी सुरक्षित होती हैं? बैटरी के बनने से लेकर इसके रीसाइकिल होने तक की प्रक्रिया में क्या कुछ होता है, इसकी जानकारी लेने के लिए हमने बैटरी टेक्नोलॉजी के क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों में से एक LOHUM के फाउंडर और सीईओ रजत वर्मा से बैटरी की टेक्नोलॉजी से जुडी तमाम बातों पर चर्चा की. पेश है इसके संपादित अंश:
1. दुनिया भर में ईवी बैटरी की टेक्नोलॉजी में किस तरह से बढ़ोतरी हो रही है और भारत का इसमें क्या रोल है?
ईवी बैटरी टेक्नोलॉजी में लगातार उन्नति हो रही है, जिसमें सबसे ज्यादा फोकस इसके परफॉर्मेंस, सेफ्टी और इसकी पहुंच पर किया जा रहा है. वहीं इसके अलावा अन्य ऑप्शन के तौर पर बाजार में बेहतर डेंसिटी वाली सॉलिड स्टेट सेल्स, सोडियम आयन सेल्स, एल्युमीनियम एयर सेल्स उपलब्ध हैं. जो ग्राहकों के सेंटेमेंट और मांग को बढ़ाने का काम कर रही हैं.
2. अलग-अलग बैटरियों के आधार पर इनकी लाइफ क्या होती है?
बैटरी के यूज और इनकी बनावट के आधार पर इनकी लाइफ लगभग 8-15 साल के बीच होती है. इसमें मौजूद सैल के मुताबिक कुछ बैटरियों की जानकारी इस प्रकार है.
एलएफपी बैटरीज- 10-15 साल तक चलती हैं. टेस्ला और फोर्ड की गाड़ियों में इनका सबसे ज्यादा यूज होता है.
एनएमसी बैटरीज- 8-12 साल की उम्र होती है. इनका सबसे ज्यादा यूज इलेक्ट्रिक गाड़ियों में किया जा रहा है.
एलटीओ बैटरीज- इनकी उम्र सबसे ज्यादा 12-20 साल तक की होती है और ये 10,000 साइकिल पूरे करने के वादे के साथ आती हैं.
एनसीए बैटरीज- इनकी उम्र 8-12 साल होती है.
3. वो कौन सी टेक्नोलॉजी हैं जिनका प्रयोग बैटरी को और बेहतर बनाने में किया जा रहा है?
इसके लिए कई सारी टेक्नोलॉजीज हैं, जिनका सहारा लिया जा रहा है. जैसे-
एडवांस्ड बीएमएस- इसमें मशीन लर्निंग और प्रिडिक्ट एनालिटिक की मदद से चार्जिंग स्ट्रेटेजी और एनर्जी इफिशिएंसी का एक्यूरेट डेटा रिकॉर्ड करने का काम किया जाता है.
कैथोड और एनोड कैमिस्ट्रीज का विकास- निकेल और लिथियम की अधिक मात्रा वाली कैथोड का विकास किया जाता है, जो बैटरी सैल्स में एनर्जी डेंसिटी को बढ़ाने के काम करती है. जिसमें एलएफपी और एलटीओ बैटरियां शामिल हैं.
सॉलिड स्टेट बैटरी- ये बैटरियां लिक्विड इलेक्ट्रोलाइट की जगह, सॉलिड इलेक्ट्रोलाइट के साथ आती हैं. जिसकी वजह से ये बेहतर सेफ्टी, हाई एनर्जी डेंसिटी और लंबी लाइफ ऑफर करती हैं.
4. बैटरियों को रिसाइकल करने के प्रॉसेस क्या है? रिसाइकल बैटरियों की लाइफ कितनी होती है क्या ये नई बैटरियों की तुलना में सस्ती होती हैं?
यूज्ड बैटरियों को इकठ्ठा करने के बाद इन्हें रिसाइकिल करने के लिए इन प्रोसेस का प्रयोग किया जाता है-
- अलग-अलग तरह की बैटरियों की छटनी और डिसअसेंबलिंग.
- इलेक्ट्रोलाइट्स जैसे इंटरनल पार्ट्स को निकलने के लिए इनको तोडा जाता है.
- कैथोड जैसे मटेरियल को रिकवर करने के लिए कैमिकल प्रॉसेस.
- इसके बाद प्राप्त हुए मटेरियल को प्यूरीफाई किया जाता है, ताकि कोई नुकसानदायक केमिकल इसमें न रहे.
- आखिर में रिसाइकिल न होने वाले मैटेरियल को सुरक्षित तरीके से डिस्पोज किया जाता है.
फिर से यूज की जाने बैटरियों की लाइफ और कीमत, इस बात पर ज्यादा निर्भर करती है कि पहले इनका यूज किस तरह से किया गया. जिसके बाद इससे मिले मैटेरियल से कितना आउटपुट लिया जा सकता है और दूसरी बार इनका यूज किस तरह किया जा रहा है. हालांकि इनकी कीमत काफी कम होती है.
हम लोहम में सेकंड लाइफ वाली बैटरीज का उसे नयी जगहों, जैसे सोलर पावर से चलने वाली ईएसएस ऍप्लिकेशन्स, 100 प्रतिशत ऑफ-ग्रिड ईवी चार्जिंग स्टेशन और यूपीएस सिस्टम्स में करते हैं.
5. बैटरियों को रिसाइकिल करना जरुरी क्यों है और इस प्रोसेस से किस तरह का वेस्ट निकलता है?
सबसे ज्यादा मुश्किल ली-आयन बैटरीज की सप्लाई चैन में आती है, क्योंकि ये सीमित मात्रा और कुछ जगहों पर पाए जाने वाले लिथियम, कोबाल्ट जैसे मटेरियल से बनायीं जाती हैं. इसलिए यूज्ड बैटरियों से इन्हें निकलना जरुरी होता है.
बैटरी रीसाइक्लिंग से न केवल धरती से कचरा कम होता है, बल्कि इन धातुओं को निकालते समय होने वाला कार्बन उत्सर्जन भी कम होता है. साथ ही इनसे निकलने वाले मैटेरियल को सप्लाई चैन में डाला जा सकता है, जिससे इसकी कमी होने के की संभावना कम हो जाती है और कीमत भी नियंत्रण में रहती है.
अब ऐसे कई तरीके हैं. जिनसे यूज्ड बैटरियों के सभी कंपोनेंट्स को पूरी तरह रीसाइकल किया जा सकता है, लोहम में हम सभी जरुरी पार्ट्स को रिकवर कर उनका इस्तेमाल करते हैं और जीरो वेस्ट इकोसिस्टम को बनाने और उसका पालन करने के उद्देश्य से काम करते हैं.
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