CNG Cars: सीएनजी यानि कंप्रेस्ड नेचुरल गैस कारों के लिए फिलहाल उपलब्ध ईंधन के सबसे साफ जलने वाले स्रोतों में से एक है. यह पेट्रोल या डीजल की तुलना में सस्ता भी है, इसलिए यदि आप पेट्रोल या डीजल कार का उपयोग करते हैं तो आपको एक निश्चित दूरी की यात्रा तय करने में सीएनजी की तुलना में ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ेगा. उदाहरण के लिए, दिल्ली में सीएनजी की कीमत लगभग 75 रुपये प्रति किलो है, जो पेट्रोल और डीजल का लगभग 25 प्रतिशत सस्ता है. इस कारण ज्यादा से ज्यादा कारों में सीएनजी के विकल्प की पेशकश करके इसके उपयोग को अधिकतम करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है, क्योंकि भारत में कुछ ही कारें मौजूद हैं जो फैक्ट्री फिटेड सीएनजी किट के साथ बाजार में आती हैं. इनमें मारुति सुजुकी, टाटा मोटर्स और और हुंडई की प्रमुख हैं. 


ज्यादा होती है कीमत


भले ही देश में कई कारें सीएनजी के विकल्प में उपलब्ध हैं लेकिन फिर भी सबसे बड़ी विसंगति यह है कि ये कार कंपनियां केवल अपनी कारों के मिड-स्पेक वेरिएंट पर ही सीएनजी किट की पेशकश करती हैं. लेकिन आखिर ऐसा क्यों होता है कि एक फ्यूल जो सस्ता है, पर्यावरण के लिए बेहतर है और आसानी से उपलब्ध है, केवल कुछ मॉडल्स और सीमित वेरिएंट के साथ ही उपलब्ध है. इसका एक कारण कारों की अंतिम लागत है. एक रेगुलर पेट्रोल कार की कीमत से औसतन सीएनजी किट की कीमत 80,000 से 90,000 रुपये अधिक होती है. अगर मारुति, टाटा और हुंडई ने टॉप-स्पेक वेरिएंट के साथ सीएनजी किट देना शुरू कर दिया, तो इसके परिणामस्वरूप उनकी कारों के टॉप-स्पेक वेरिएंट की कीमतों में बढ़ोतरी होगी और इससे ब्रांडों की इमेज पर खराब प्रभाव पड़ेगा और ये कंपनियां भारत की तीन सबसे बड़ी कार निर्माता हैं. 


ब्रांड वैल्यू पर पड़ता है असर


एक और कारण यह है कि कार निर्माता कंपनियां हाई वेरिएंट या ज्यादा महंगी कारों में सीएनजी की पेशकश नहीं करते हैं, क्योंकि इससे कारों के प्रीमियम एक्सपीरियंस प्रभावित होता है, चूंकि सीएनजी आमतौर पर सार्वजनिक परिवहन वाहनों पर देखी जाती है, इसलिए इसे अक्सर भारत में एक गरीब आदमी के ईंधन के रूप में देखा जाता है, और खरीदार जो पेट्रोल या डीजल वाहन खरीदना चाहते हैं, अगर यह सीएनजी के साथ भी उपलब्ध है तो एक खास वेरिएंट को चुनना पसंद नहीं करते हैं. इसका एक अच्छा उदाहरण स्कोडा से समझा जा सकता है, जो यूरोप में सीएनजी गाड़ियों की बिक्री करती है, लेकिन भारत में, स्कोडा को एक प्रीमियम ब्रांड के रूप में जाना जाता है और सीएनजी-फिट वाहनों की बिक्री से उनकी ब्रांड इमेज पर भारी असर पड़ेगा.


बूट स्पेस की कमी


एक अन्य कारण में सीएनजी किट काफी जगह भी लेती है, इन कारों में ज्यादातर देखा जाता है कि बूट स्पेस को सीएनजी सिलेंडर घेर लेते हैं, यानि आप बूट स्पेस में ज्यादा सामान नहीं रख पाएंगे. सीएनजी कारें अक्सर शहर के अंदर चलने को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं, और उनसे राजमार्ग पर सफर के लिए अच्छा नहीं माना जाता है. 


सीएनजी नेटवर्क की कमी


इन सभी रीजन के अलावा एक आखिरी कारण देश में मौजूद सीएनजी नेटवर्क है, अधिकांश प्रमुख शहरों में सीएनजी पंप उपलब्ध हैं, लेकिन कमर्शियल वाहनों और निजी वाहनों के समान पंप पर तीन पहिया वाहनों के भरने के कारण अक्सर लंबी कतारें लगती हैं. राजमार्गों पर, कई पंप सीएनजी की बिक्री नहीं करते हैं और इसलिए सीएनजी यूजर्स को हाईवे पर पेट्रोल पर स्विच करना पड़ता है, जिसका मतलब है कि वे यात्रा पर ज्यादा राशि को खर्च करते हैं.


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